भारतवर्ष में ही नहीं अपितु पूरी धरती पर अगर कोई साधक कहे कि वह आध्यात्मिक है तो वह पूर्णतः गलत है – 100 प्रतिशत | शक की कोई गुंजाइश ही नहीं | जहां मैं – वहां अध्यात्म कैसा ? सच्चा आध्यात्मिक साधक वही हो सकता है जो जीवन में एक दिन भी खुद के लिए न जिए | जो खुद के लिए जीता है – जो खुद को आगे बढ़ाना चाहता है – उसे तो अध्यात्म की परिभाषा भी नहीं मालूम | आध्यात्मिक जीवन उस दिन शुरू होता है जब हम अपनी मैं पर संपूर्ण control पा जाते हैं | अपने शरीर के प्रति मोह कैसा ? शरीर के प्रति मोह खत्म कर सिद्धार्थ पत्नी और बच्चे के पैर छूकर जंगलों की ओर मुड़ गए और लौटकर कभी वापस घर (राजमहल) नहीं आए |
कृष्ण को अपने से मोह था – नहीं | अपने शरीर से मोह था – नहीं | जैन धर्म के २४ वे तीर्थंकर महावीर को अपने से मोह था – नहीं | अपने शरीर से मोह था – नहीं | जैन धर्म में उपसर्ग का कारण ही अपने शरीर से मोह खत्म करना है | मैं, अपनापन और मोह इतनी जल्दी और आसानी से खत्म नहीं होते | इसी कारण ब्रह्म ने मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों की रचना की | जो साधक आध्यात्मिक राह पर चलने के लिए गुरु खोजता है वह तो अव्वल दर्जे का अज्ञानी हुआ | जब शरीर का ही मोह खत्म करना है तो शारीरिक गुरु किसलिए ? अध्यात्म यानी दूसरों के लिए सेवाभाव, दूसरों के लिए जीना | महावीर, गौतम बुद्ध, Jesus, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण हमेशा दूसरों के लिए जीते थे, अपने लिए एक पल भी नहीं | इस धरती पर कितने गुरु हैं जो साधक को दूसरों के लिए जीने की सलाह देते हैं ?
अपने लिए जीने वाला, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए जीने वाला साधक अपना अमूल्य समय नष्ट कर रहा है | जब तक हम दूसरों के लिए जीना नहीं सीखेंगे – स्वयं की आध्यात्मिक प्रगति zero रहेगी | 5 वर्ष की आयु में घोर चिंतन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा की अगर इसी जीवन में भगवान तक पहुंचना है तो हर पल औरो के लिए जीना होगा | 5 वर्ष की आयु में एक घटना के कारण ब्रह्म से वार्तालाप शुरू हुई और सारी बात साफ साफ समझ में आ गई | 5 वर्ष की आयु से मैंने जीवन का हर पल औरों के लिए जीया – नतीजा 3 अगस्त 1993 को 2 1/2 घंटा ब्रह्म से साक्षात्कार और जीवन का क्रम पूरा हो गया | यह मेरा आखरी जीवन है – 84 लाखवी योनि | अपने शुद्ध रूप को पाने के बाद – एक नया शरीर धारण करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती | जब शरीर छूटेगा – मोक्ष (जन्म और मृत्यु के क्रम से छुटकारा) प्राप्त हो जाएगा |
हर साधक को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए – खुद के लिए जीना, खुद की आध्यात्मिक उन्नति के लिए जीना तुरंत बंद कर दें | सोच कर देखिए – जैसे मैं सोचता था 5 वर्ष की उम्र में – अगर भगवान की सेवा करनी है तो कैसे – सभी जीव भगवान के बच्चे हैं – उनकी सेवा करूंगा तो भगवान की सेवा ही तो करूंगा और मैं कभी गलत साबित नहीं हुआ | अगर आप मुझे बचपन में पानी में फंसी चींटियों की मदद करते देखते, फंसी हुई तितलियों की, छोटे मेंडकों की मदद करते हुए देखते तो आश्चर्य करते | मां अक्सर कहती तू कर क्या रहा है – मां कुछ पलों की बात है इनकी जान बच जाएगी | सेवा करते करते मैंने जाना मैं भगवान के नजदीक आता जा रहा हूं | 6 1/2 वर्ष की आयु के बाद भगवान से बात कभी भी हो जाया करती | उसी तरह जैसे वह सामने बैठा हुआ हो |
अपने 60 वर्ष के आध्यात्मिक जीवन में मुझे अभी तक एक भी साधक नहीं मिला जो खुद के लिए न जीता हो | तो फिर आध्यात्मिक प्रगति की उम्मीद कैसी ? कुछ सच्चे साधक सही राह पर चले भी लेकिन परिवार का मोह छोड़ने में वे भी असक्षम साबित हुए | 125 करोड़ हिन्दू लेकिन अध्यात्म की राह पर चलने वाला एक भी सच्चा साधक नहीं – है न आश्चर्य की बात ? गीताप्रेस गोरखपुर की कोशिशें भी नाकाम रहीं – कीमत से कम में ज्यादातर टीकाएं उपलब्ध कराती है लेकिन किताबी ज्ञान के आगे कोई बढ़ना नहीं चाहता | हर साधक के अंदर मैं (अहंकार – मेरा तेरा का भाव) घूमता रहता है – मैं पाकर ही रहूंगा | मैं, अपने अहम को छोड़ नहीं पा रहे हो – क्या खाक आध्यात्मिक उन्नति करोगे ?
मैं कभी इतनी उग्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करता लेकिन जैसे जैसे घोर कलियुग का अंत नजदीक आ रहा है वाणी में कटाक्ष, तीव्रता बढ़ती चली जाएगी – सिर्फ सच्चे साधकों को सचेत करने के लिए | 125 करोड़ भारतीयों में सिर्फ 1 या 2 स्वामी विवेकानंद ही तो ढूंढने और तैयार करने हैं और इस धरती पर मेरा कार्य पूरा हो जाएगा – 1993 में साक्षात्कार के समय ब्रह्म ने यह वचन लिया था | 2034 तक भारत अखंड भारत में परिवर्तित हो जाएगा – मुझे पूरी उम्मीद है उसके बाद मेरा कार्य जल्द पूरा हो जाएगा | ब्रह्म का साक्षात्कार होने तक एक बार भी भगवद गीता खोल कर नहीं देखी लेकिन साक्षात्कार के बाद भगवद गीता पर nonstop 365 दिन का प्रवचन कर सकता हूं | लोग ज्ञान कि बातें करते हैं – ज्ञान कहां से उत्पन्न होता है कभी सोचा है किसी ने ?
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar