वृद्धावस्था में आध्यात्मिकता क्यों आती है ?


जब इंसान जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहा होता है, जब सत्य हम पर हावी हो जाता है, तो आत्मा पूरे गुजरे हुए वक़्त का अवलोकन कराती है | लेकिन आंसुओं के अलावा कुछ नहीं मिलता | जीवन तो मौज मस्ती में गुजार दिया, अब जाते वक़्त अध्यात्म क्या करेगा | आत्मा दोबारा शरीर लेकर लौटेगी | अच्छे कर्म किए होंगे तो अगला जन्म अच्छा ही होगा अन्यथा अनर्थ | माया में उलझे रहे, ज्यादा पुण्य नहीं कमाया, यह अहसास आत्मा करा ही देती है |

 

आत्मा हमेशा से चाहती है कि मनुष्य जल्द से जल्द आध्यात्मिक होकर मोक्षगामी बने, लेकिन आत्मा की सुनी किसने ? तो गलतियों का अहसास आत्मा मृत्यु शैय्या पर लेटे इंसान को कराती ही है, आखिर शरीर उसने धारण किया था | अंत समय में आध्यात्मिक नहीं हुआ जा सकता, जो पूरे जीवन नहीं किया, वोह मिनटों में कैसे मिल जाएगा |

 

कुछ लोग अंत समय में मुक्ति भवन वाराणसी में जाकर शरीर त्यागते है इस उम्मीद में कि मोक्ष मिलेगा | यह पाप है, भयंकर पाप | जीवन भर अध्यात्म में उतरे नहीं, क्या हम अंत समय में ब्रह्म को मूर्ख समझने की कोशिश कर रहे हैं ? ब्रह्म ने मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों और १ करोड़ साल की अवधि का प्रावधान किया हुआ है मोक्षगामी होने के लिए | अंत समय में मूर्खतापूर्ण कार्यों में लिप्त होने से बचें अन्यथा और पाप लगेगा |

 

सभी बातों के मद्देनजर ब्रह्म अंत समय में आंखों के सामने पूरे जीवन दृश्य को दोहराते हैं जिससे हमें अपनी गलती का अहसास हो | मेरा नम्र निवेदन है, क्योंकि अंत समय में अध्यात्म में नहीं उतरा जा सकता तो हमें ब्रह्म से यह प्रार्थना करनी चाहिए –

 

प्रभु, इस जन्म में गलती हो गई जो आपके बताए रास्ते पर नहीं चला (हृदय से आती आवाज़ को आजीवन अनसुना करता रहा), तो कृपा कर कुछ ऐसा प्रावधान करें कि अगली योनि में अध्यात्म का रास्ता पकड़ मोक्ष ले सकूं |

 

Right Age to start a Spiritual Journey | आध्यात्मिक ज्ञान लेने की सही उम्र | Vijay Kumar Atma Jnani

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