हम ईश्वर के अंश हैं और अंत में उसमें मिल जाना है फिर जन्म मृत्यु सुख दुख संसार मोह आदि क्यों ?


शुरू से पूरे क्रम को देखिए –

1. प्रलय हुई और पिछला ब्रह्माण्ड सिमट रहा है | ब्रह्माण्ड सिमट कर अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) के आकार में आ जाता है यानी ब्रह्म अपना original स्वरूप प्राप्त कर लेते हैं | ब्रह्म यानि पूरे ब्रह्माण्ड में स्थित हर आत्मा जब प्रलय के समय automatically 84 लाखवी योनि में स्थापित हो जाती हैं तो सभी एकत्रित आत्माओं का झुंड आधे अंगूठे का आकार लेता है जिसे हम ब्रह्म पुकारते हैं |

 

2. इतना दिव्य शक्ति पुंज, जिसे ब्रह्म कहते हैं, इतनी ज्यादा शक्ति जो आधे अंगूठे के आकार में समाई हुई है, को क्षणभर के लिए भी रोक पाना संभव नहीं और वह फिर Big Bang के द्वारा फटता है | ऐसा होने पर सारी आत्माएं दोबारा से फिर नए बनते ब्रह्माण्ड में फ़ैल जाती हैं |

 

3. आत्माओं का यह ब्रह्मांडीय सफर तब तक ऐसे ही चलता रहता है जब तक सूर्य और धरती उत्पन्न नहीं हो जाते | धरती बनने के बाद जब उस पर atmosphere जीवन पनपने योग्य हो जाता है तो आत्माएं धड़ल्ले से शरीर ग्रहण करना शुरू कर देती हैं और शुरू हो जाता है आत्माओं का 84 लाख योनियों का सफर |

 

4. ब्रह्मांडीय सफर में आत्माएं अपने अंदर अशुद्धियां ले लेती हैं | जब प्रलय हुई तब सारी आत्माएं शुद्ध रूप में वापस आ गईं | लेकिन कितनी देर के लिए ? नए ब्रह्माण्ड में सभी आत्माओं को फिर से 84 लाख योनियों के सफर में जाना ही होता है | सब शाश्वत system से बंधे हैं | इसमें ब्रह्म भी कुछ नहीं कर सकते | सब कुछ अनादि और अनंत है |

 

ब्रह्माण्ड प्रलय के साथ खत्म होता है और नया ब्रह्माण्ड उत्पन्न हो जाता है | फिर यह ब्रह्माण्ड प्रलय के साथ खत्म होगा और फिर Big Bang के साथ नए ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति | यह सिलसिला अनश्वर है, जिसका न आदि है न अंत | अगर कोई कहे ब्रह्म यह क्या खेल खेल रहे हैं, तो इसका उत्तर है – वह ही जाने | इसीलिए शास्त्रों में यह बात पूछने की बिल्कुल मनाही है कि ब्रह्म ने यह संसार बनाया क्यों ?

उसका खेल ब्रह्म ही जाने !

 

5. 84 लाख योनियों के सफर में आत्मा पहली योनि लेती है अमीबा की (एक इन्द्रिय जीव) | उसके बाद द्वीन्द्रिय, फिर त्रयींद्रिया, चतुरिन्द्रिय और फिर पंचेन्द्रिय (जो मनुष्य खुद है) | अमीबा के बाद आत्मा हर तरह के कीट पतंगों का रूप धारण करती है, फिर हर तरह के पेड़ पौधों का, फिर हर तरह के पशु पक्षियों का और इस तरह 73 लाख योनियां के सफर से गुजर जाने के बाद आत्मा पहली बार मनुष्य योनि में आती है |

 

6. मनुष्य रूप में 11 लाख योनियां होती हैं | कुछ समझे आप ? तत्व ज्ञान, पूर्ण कुण्डलिनी जागरण, सहस्त्रार खुलना, जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह को काट 84 लाखवी योनि में स्थापित होने के लिए ब्रह्म ने 1 करोड़ वर्ष की अवधि दी है (11 लाख योनियों का सफर) | अब मनुष्य चाहे तो present योनि में अध्यात्म की राह लेकर तत्वज्ञान प्राप्त कर ले या भविष्य के लिए छोड़ दे, यह सिर्फ हम पर निर्भर है | इसमें ब्रह्म का बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं |

 

7. जब मनुष्य 11 लाख योनियों के भव में फँस ही गया (sorry नहीं, आ ही गया) तो जीवन में उतार चढ़ाव, सुख दुख इत्यादि आएंगे ही | सोने को उजालने के लिए उसे आग में तपाना ही होता है | इसी तरह मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने के लिए खुद को अंदर से तपाना ही होगा, समय समय पर अग्नि परीक्षाएं देनी ही होंगी | तभी हम जीवन में निखरेंगे और आगे बढ़ेंगे | अगर बुद्ध ने कहा – यह संसार/जीवन दुखमा है तो मेरा यह मानना है कि तत्वज्ञानी बुद्ध ऐसा कह ही नहीं सकते | उनकी कही बातें उनके अनुयाई समझ ही नहीं पाए |

 

जीवन का अंतिम पड़ाव है अध्यात्म के रास्ते पर चलकर महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बन जाना | इसके आगे कुछ भी नहीं | जब आत्मा शुद्ध रूप में वापस आ जाती है तो फिर उसका मनुष्य शरीर धारण करने में कोई प्रयोजन नहीं रह जाता | कर्मों की पूर्ण निर्जरा होते ही जन्म और मृत्यु का आवेग अस्त हो जाता है और आत्मा फिर हमेशा के लिए ब्रह्म में लीन हो जाती है |

 

अंततः मुझे कहना है – इतने सुन्दर संसार को बनाने के लिए, ब्रह्म का हम जितना भी शुक्रिया अदा करें कम होगा | इतनी सुन्दर वादियां, लहलहाती नदियां, चहचाहते पक्षी और हंसते खिलखिलाते, किलकारियां मारते छोटे बच्चे और उसके बीच हम – वाह रे भगवान कैसी सुन्दर दुनिया रचाई !

 

1993 में 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे के साक्षात्कार के दौरान उसने जो 84 लाख योनियों का दृश्य दिखाया/बताया, उसी के आधार पर सब लिख रहा हूं | प्रत्यक्षदर्शी हूं शंका की दृष्टि से मत पढ़िएगा/देखिएगा |

 

अगर आप अध्यात्म के सच्चे साधक हैं तो उपरोक्त तथ्य को बार बार ध्यान से पढ़कर चिंतन/ मनन कीजिएगा और फिर देखिएगा अपनी आध्यात्मिक उन्नति ! हो सके तो और साधकों के साथ सत्संग कीजिए – ऊपर लिखी बातों पर विचारों का आदान प्रदान | अगर मन में प्रश्न आएं तो निसंकोच comments में लिखें, उत्तर अवश्य मिलेगा |

How do you express Gratitude in words to God? भगवान की कृपा के प्रति कृतज्ञता | Vijay Kumar

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