अमरता भौतिक जीवन का नहीं बल्कि आत्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है | सनातन शास्त्र कहते हैं – आत्मा जब अपने शुद्ध रूप को वापस प्राप्त कर लेती है तो वह अमर हो जाती है और यह स्थिति कब आती है – जब साधक अध्यात्म की राह पकड़ तत्वज्ञानी बन जाता है यानि आत्मा के अंदर निहित क्लेशों से हमेशा के लिए निवृत्ति |
मनुष्य रूप में अमरत्व की सार्थकता सिर्फ हिंदी serials तक सीमित है – यथार्थ में मनुष्य के लिए अमरत्व का कोई महत्व नहीं | मनुष्य शरीर बना ही मरने के लिए है – उम्र पूरी हुई नहीं कि आत्मा नया शरीर धारण कर लेगी | यह क्रम अबाध रूप से चलता रहता है जब तक 84 लाखवी योनि न आ जाए | 84 लाखवी योनि यानि आत्मा के ब्रह्मांडीय सफर का अंतिम पहर (पड़ाव) |
सरल भाषा में समझें तो अमरत्व यानि आत्मा अपने असली शुद्ध स्वरूप को वापस पा गई और शुद्ध हुई आत्मा को अब फिर से मनुष्य शरीर धारण करने की आवश्यकता ही नहीं रह गई | यह अवस्था है जब धरती पर आध्यात्मिक साधक निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंच सहस्त्रार जागृत कर लेता है (यानि कुण्डलिनी पूर्णतया जागृत हो चुकी है और सातों चक्र active हैं) |
शरीर जो नश्वर है वह अमरत्व कैसे प्राप्त कर सकता है ? भारतीय दर्शन में समुद्र मंथन की गाथा बहुत सारगर्भित रहस्यों को उजागर करती है – जैसे मनुष्य जीवन की क्षणभंगुरता | मनुष्य जीवन अपने आप में बेहद रोचक मील का पत्थर है क्योंकि आत्मा मनुष्य रूप में ही अपने असली शुद्ध रूप में वापस आ पाती है |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani