आत्मज्ञान यानि मनुष्य शरीर में रहते हुए अपने मूल स्वरूप को वापस प्राप्त कर लेना – एक शुद्ध आत्मा हो जाना | यह संभव हो पाता है जब मनुष्य अध्यात्म की राह पकड़ 12 वर्ष की अखंड तपस्या के बाद अंततः आत्मज्ञानी, तत्वज्ञानी बन जाता है | तत्वज्ञानी मतलब कुण्डलिनी का पूर्ण जागृत होना, सहस्त्रार पूरी तरह active हो जाना | पिछले 150 वर्षों में संपूर्ण धरती पर सिर्फ 2 साधकों को आत्मज्ञान प्राप्त करने का मौका मिला – महर्षि रमण व रामकृष्ण परमहंस |
आत्मज्ञान की स्थिति में आने के बाद मनुष्य को धरती पर कुछ और प्राप्त करना बाकि नहीं रहता | आत्मज्ञान प्राप्त करना है तो अध्यात्म में उतरना होगा – धार्मिक कर्मकांडो को हमेशा के लिए त्यागना होगा | मंदिर जाने से, गंगाजी में नहाने से, हवन इत्यादि से पापकर्म कम नहीं होते – कर्मों की निर्जरा के लिए हमें 12 वर्ष की साधना (तपस्या) में उतरना होगा | 12 वर्ष की अखंड ब्रह्मचर्य व ध्यान की तपस्या कुण्डलिनी जागृत कर सहस्त्रार activate कर देती है |
800 करोड़ धरतीवासियों में कितने होंगे जो सही ध्यान या ब्रह्मचर्य की तपस्या में उतर पाते हैं ? शायद 100 लोग भी नहीं | सनातन श्रुति शास्त्र कहते हैं – स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस की अवस्था में पहुंचने में मात्र 12 या 14 वर्ष का समय चाहिए – तो दूसरा, तीसरा स्वामी विवेकानन्द या रामकृष्ण परमहंस कहां हैं ? भारत अध्यात्म का मूल क्षेत्र है – लेकिन कितने साधक ध्यान या ब्रह्मचर्य की सही क्रिया को सीखने की कोशिश करते हैं ?
प्रपंचों की दुनियां में खोने से क्या होगा – सही को सही कहना होगा | सत्य का दामन पकड़ यह साहस पैदा करना होगा कि सारी दुनिया एक तरफ और सिर्फ आप सत्य के साथ ! सत्य की राह पर चलने से लोग घबराते हैं और पूरी उम्र गलत राह पर चलते रहते हैं – नतीजा, मृत्यु से मुलाकात, जीवन का अंत | सच्चा आध्यात्मिक पुरुष कभी भी सच (सत्य) या मृत्यु से नहीं घबराता – तभी वह आध्यात्मिक प्रगति कर पाता है |
सही आध्यात्मिक प्रगति के लिए हमें 12 वर्ष के गहन ध्यान में उतरना होगा – वह ध्यान जो महर्षि रमण शवासन की मुद्रा में लेटकर चिंतन (self enquiry – नेति नेति) के माध्यम से किया करते थे | साथ साथ 12 वर्ष की ब्रह्मचर्य की तपस्या भी करनी होगी |
5 वर्ष की आयु में भगवान की खोज में जाना तय किया | 24 की उम्र में 12 वर्ष की तपस्या शुरू की और 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म से 2 1/2 घंटे की मुलाकात (साक्षात्कार) | जब 5 वर्ष का था, अध्यात्म के बारे में कुछ मालूम नहीं था लेकिन हृदय से आती भगवान कृष्ण की वाणी ने रास्ता प्रशस्त कर दिया | सत्य की राह पर चलने का नतीजा था – हृदय से आती ब्रह्म/ कृष्ण की आवाज साफ सुनाई देती थी |
हर सच्चे साधक से यही कहना है – पहले खुद को सत्य में स्थापित करो और फिर 12 वर्ष की तपस्या में उतर जाओ |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani