आत्मज्ञान का शाब्दिक अर्थ है आत्म ज्ञान, यानि खुद का ज्ञान और क्योंकि हम मूलतः एक आत्मा हैं तो आत्मज्ञान का मतलब हुआ आत्मस्वरूपी खुद का ज्ञान | आध्यात्मिक परिपेक्ष में जब एक साधक 12 वर्ष की तपस्या के बाद स्वयं को तत्व रूप में जान लेता है वह आत्मज्ञानी कहलाता है |
आत्मज्ञानी, कैवल्यज्ञानी, तत्वज्ञानी और ब्रह्मज्ञानी सभी इस बात की ओर इशारा करते हैं की साधक ने कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर स्वयं को एक शुद्ध आत्मा बना, जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से हमेशा के लिए मुक्त कर लिया है | महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण – सभी अपने जीवन में 12 साल की तपस्या (ध्यान और ब्रह्मचर्य की) के बाद आत्मज्ञानी हो हमेशा के लिए माया (धरती) के चंगुल से मुक्त हो गए |
एक शुद्ध आत्मा का धरती पर दोबारा शरीर धारण करने में कोई प्रयोजन नहीं रह जाता | आत्मज्ञान प्राप्त करना कोई भौतिक क्रिया नहीं है जैसे हमने चौथी कि परीक्षा उत्तीर्ण की और पांचवीं कक्षा में पहुंच गए | आत्मज्ञान सिर्फ वह साधक प्राप्त कर सकता है जो अपने अंदर उमड़ते हजारों प्रश्नों को जड़ से खत्म कर सके |
न एक भी विचार अंदर आएगा न बाहर जाएगा और शून्य (निर्विकल्प समाधि) की स्थिति आ जायेगी | आत्मज्ञान प्राप्त किया साधक 84 लाखवी योनि में स्थित है | शरीर छूटा और मोक्ष हो गया |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani