आत्मज्ञान प्राप्त करने के कितने तरीके हैं ?


आत्मज्ञान, कैवल्यज्ञान, तत्वज्ञान और पूर्ण कुण्डलिनी जागरण व सहस्त्रार की स्थिति तक पहुंचने के लिए ब्रह्म द्वारा निर्देशित रास्ता एक ही है – अध्यात्म का | दुनिया में ज्यादातर साधक धार्मिक कर्मकांडो में उलझ अपना कीमती समय गवां देते हैं और पूरी जिंदगी विलाप करते रहते हैं कि उन्हें कुछ मिला ही नहीं | अगर मुंबई जाना हो और आप चंडीगढ़ के रास्ते पर चल दें तो क्या मंजिल मिलेगी ?

 

800 करोड़ लोगों में अध्यात्म को समझने वाले कितने लोग होंगे – मुश्किल से 100 भी नहीं | अगर ऐसा नहीं तो दूसरा, तीसरा स्वामी विवेकानंद कहां है ? आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर आत्मज्ञानी, तत्वज्ञानी बनने में 12 या 14 साल लगते हैं | स्वामी विवेकानंद को गए 123 वर्ष बीत गए ? तो सच्चे साधक हैं कहां ? आज के समय में हिमालय की कंदराओं में जाने की आवश्यकता नहीं – सच्चा साधक घर में रहकर भी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है !

 

जरूरत है 12 वर्ष की अखंड तपस्या में उतरने की – 12 साल का ब्रह्मचर्य और ध्यान सच्चे साधक को सीधे ब्रह्म की ड्योढ़ी तक ले आएगा | इस 12 वर्ष की साधना में एक भी विघ्न allowed नहीं | विश्वामित्र बने नहीं कि ब्रह्मचर्य का 12 साल का व्रत टूट गया | फिर से 12 साल की शुरुआत ! 12 वर्ष की अखंड तपस्या – हर सच्चे साधक को रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बनाकर ही छोड़ती है |

 

आत्मज्ञान प्राप्त करने का सीधा मतलब है – आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण की स्थिति में आ जाना | बुद्ध या महावीर बन जाना | तपस्या कठिन है – बेहद कठिन लेकिन असंभव नहीं | महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण – सभी आम इंसान पैदा हुए लेकिन उनके जुनून के आगे ब्रह्म ने भी घुटने टेक दिए और उन्हें स्वतंत्र कर मोक्ष प्रदान किया | मोक्ष यानी जन्म और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति |

 

आत्मज्ञान किताबी ज्ञान नहीं, यह सिर्फ चिंतन (english में contemplation) में उतरने से होता है | हमें अपने अंदर आते हजारों प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ उन्हें जड़ से खत्म करना होता है – यानि कर्मों की पूर्ण निर्जरा | प्रश्न जैसे – हम कौन हैं, कहां से आए हैं, भगवान कौन होते हैं, हमारा भगवान व और जीव जंतुओं से क्या रिश्ता नाता है इत्यादि | जिस दिन हमारे अंदर एक भी प्रश्न नहीं रह जाएगा – न एक विचार अंदर आएगा न बाहर जाएगा तो शून्य की स्थिति आ जाएगी |

 

बस यही स्थिति है निर्विकल्प समाधि की – जिसके आगे और कुछ प्राप्त करना बाकि नहीं रहता और साधक अंततः 84 लाखवी योनि में पहुंच ही जाता है | आत्मा पूर्णतया शुद्ध हो गई और अब उसे कर्मों की निर्जरा की जरूरत नहीं, नया शरीर धारण करने की आवश्यकता नहीं |

 

12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani

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