आत्म जागरूकता और आत्म चेतना में अंतर क्या है ?


जब हम बड़े होते हैं तो सुनने में आता है कि हम सिर्फ एक शरीर नहीं, बल्कि एक चेतना हैं, चेतन तत्व जिसे दुनिया आत्मा के नाम से पुकारती है | शुरू में बच्चे को कुछ समझ नहीं आता कि मेरे अंदर कौन हो सकता है और मैं एक साथ दो कैसे हो सकता हूं ?

 

धीरे धीरे हमें अहसास होता है कि हम आत्म चेतना हैं यानि चेतना से युक्त एक शरीर जो एक जीव की भांति काम करता है | हम यह भी realize करते हैं कि सभी योनियों के जीव जैसे कीट पतंगों, पेड़ पौधे और पशु पक्षी इत्यादि भी चेतना यानि आत्मा तत्व से युक्त हैं |

 

हम मनुष्य हैं, सबसे उच्च योनि में स्थापित हैं | और सत्पुरुषों की संगति के बाद यह अहसास होता है कि हम एक दिव्य काम के लिए पैदा हुए हैं और वह दिव्य कर्म है – आत्म जागरूकता यानी स्वयं की जागृति | और इस जागृति को प्राप्त करने के लिए, यानि खुद की असलियत पहचानने के लिए कि हम एक आत्मा हैं, हमें अध्यात्म में, ध्यान में चिंतन के रास्ते उतरना होगा | आत्म बोध स्वयं कभी नहीं होगा |

 

आत्म जागरूकता के लिए साधक को कुण्डलिनी जागरण करना होगा | और पूर्ण कुण्डलिनी जागरण सम्भव हो पाता है जब हम 12 साल के अखंड ब्रह्मचर्य, और 12 साल की ध्यान की तपस्या में उतरेंगे |

 

तो पहले अहसास होगा हम चेतना हैं और अगर जागरूक होना चाहते हैं यानि जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से बाहर निकलना चाहते हैं, तो अध्यात्म का मार्ग लेकर यह भी कर सकते हैं और इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर महर्षि रमण के level पर पहुंच सकते हैं |

 

12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani

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