जीवन में 5 वर्ष की आयु से अध्यात्म का दामन थाम लिया | साथ में सत्य का चोला भी | ऐसा करने से हृदय से आती कृष्ण (सारथी) की आवाज़ बिल्कुल साफ सुन सकता था |
फिर शुरुआत हुई ब्रह्मचर्य के पालन की और ध्यान तो हर समय चलता रहता था | ध्यान वो नहीं जिसमें आज की दुनिया संलिप्त रहती है – किसी गुरु को ढूंढों और उसकी बातों का अनुसरण करते रहो | अपने अंदर उमड़ते प्रश्नों की हर समय निर्जरा करना सच्चा ध्यान है |
मेरा बचपन से यह मानना था कि कृष्ण या महावीर जैसा तत्वज्ञानी गुरु मिला तो ठीक, लेकिन ऐसे किसी इंसान को गुरु न मानूंगा न बनाऊंगा जिसे खुद को तत्वज्ञान नहीं | महावीर ने सही कहा है – पहले तत्वज्ञानी बनो फिर देशना (प्रवचन) दो |
24 वर्ष की आयु में 12 साल की तपस्या में उतर गया – अखंड ब्रह्मचर्य और ध्यान | 37 वर्ष की आयु में 3 अगस्त सुबह 1.45 पर ब्रह्म (जिसने पूरा ब्रह्माण्ड बनाया) से 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार और आध्यात्मिक सफर का अंत हो गया |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani