जीवन में (आध्यात्मिक या भौतिक) ज्यादातर लोगों का मानना है – समय से मूल्यवान कुछ भी नहीं | हर पल कीमती है – गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता | 70~80 वर्ष के जीवन में व्यर्थ गंवाने के लिए समय है ही कहां – इत्यादि ! क्या समय से बढ़कर ज्यादा मूल्यवान कोई चीज है ?
मैं भी जीवन में समय की सही कीमत पहचानता हूं लेकिन समय से कहीं ज्यादा मूल्यवान वस्तु है हमारी सोच | भारत की विरासत में एक समय ऐसा था जब IIT, IIM नहीं होते थे – होता था तो गुरुकुल का परिपक्व अध्ययन क्रीड़ाक्षेत्र जहां हर तरह का पाठ पढ़ाया जाता था | और उसी क्रम में संपूर्ण भारतवर्ष में उभरे लाला प्रवत्ति के व्यवसायी जो अपनी इच्छानुसार business करने में पूर्णतया सक्षम थे | घनश्याम दास बिरला उसी कड़ी के एक सफल businessman थे |
एक आम इंसान और घनश्याम दास बिरला में क्या फर्क था – सिर्फ सोच का | घनश्याम दास बिरला की सोच इतनी परिपक्व थी कि उन्होंने एक विशाल business साम्राज्य स्थापित किया | हर सफल business/ businessman के पीछे होती है उसकी परिपक्व सोच जो उसे सफलता की बुलंदियों तक ले जाती है | आप पढ़े लिखे हों या नहीं, एक सफल businessman बनने के लिए जरूरत होती है सिर्फ और सिर्फ एकाग्रचित positive सोच की |
एक राजा और रंक में फर्क होता है सिर्फ सोच का | वहीं कद काठी, लगभग वही खाना पीना, सोना इत्यादि – लेकिन एक राजा है दूसरा एक मामूली मजदूर | फर्क दोनों में है तो सिर्फ सोच का | राजा सिर्फ कहने के लिए (नाम से) राजा नहीं है – उसकी सोच भी राजसी है | वहीं वह मजदूर अकारण ही कभी भी किसी से झगड़ पड़ेगा – बिना सोचे समझे | अगर समय के साथ हम अपनी सोच परिपक्व कर लें तो संभव है हम भी जीवन के उस मुकाम पर पहुंच जाएं जहां पहुंचना चाहते हैं |
कौन कहता है सफल होने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी है – जरूरत तो बस एक चीज की है – परिपक्व सोच की और वह भी एकाग्रचित | अगर माता पिता के परिश्रम के फलीभूत कोई बच्चा इस लायक बनता है कि विदेश में जाकर अच्छी जिंदगी जी सके तो यह उन माता पिता की अच्छी सोच का नतीजा है | और आज के समय में कितने ही बच्चे माता पिता को गरीब अनपढ़ गंवार समझ – मझधार में छोड़ हमेशा के लिए विदेश चले जाते हैं – इस बात से अनभिज्ञ कि कर्म लौट कर आते हैं |
कुछ को ब्रह्म इसी जन्म में दंडित करते हैं और कुछ अगले जीवन में दंड पाएंगे | हिसाब किताब तो होकर रहेगा | गुरुकुल में पढ़े बच्चे कभी ऐसा व्यवहार नहीं करते क्योंकि संस्कार उनकी सबसे बड़ी पूंजी होती है | भारत के ये संस्कार ही तो हैं जिन्हें विदेशी (गोरी चमड़ी) कभी समझ ही नहीं पाते और चाहते हैं भारत/ भारतीयों से टक्कर लेना | आने वाले समय में गुरुकुल प्रथा पूर्ण भारतवर्ष में दोबारा लौटकर आने वाली है – Lord Macaulay की आत्मा कब्र में लेटे लेटे तड़फेगी |
गुरुकुल सिर्फ शिक्षा प्रदान करने का स्थान नहीं होते – वह तो मानव को उसके सम्पूर्ण विकास में एक सहायक/ सीढ़ी का काम करते हैं जिससे आप एक सक्षम पूर्ण इंसान बन सकें | सोच को परिपक्व करने के लिए गुरुकुल से बेहतर स्थान नहीं |
मुझे गुरुकुल प्रथा की महत्ता 6 1/2 वर्ष की आयु में समझ आ गई थी लेकिन गुरुकुल तो हमारे गांव में था ही नहीं | बहुत सोचने पर इस नतीजे पर पहुंचा की मां से पूछते हैं – उसे तो ज्ञात होगा ही | मां को नहीं मालूम तो पिताजी के पास | पिताजी के बाद अध्यापकजी और फिर हेडमास्टरजी | जब हेडमास्टरजी ने कहा गांव के सबसे समझदार व्यक्ति तो तुम्हारे दादाजी हैं (जो संसार से सन्यास लिए बैठे हैं) और मैं भी हर इतवार उनसे सलाह लेने जाता हूं – तो मैंने अपने प्रश्न दादाजी के सम्मुख रखे |
दादाजी को असमर्थ पाकर मैंने तय किया सब कुछ खुद ही खोजना होगा जैसा दादाजी ने कहा है | और मैंने अपनी सोच को सुदृढ़ कर लिया – हर समय, हर किसी के लिए अच्छा ही सोचूंगा | यह मेरी एकाग्रचित positive सोच का नतीजा ही था कि 31 वर्षों के बाद आखिरकार ब्रह्म ने 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार दिया और मेरे सम्पूर्ण जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया | आज के समय में सम्पूर्ण वेद, उपनिषदों और भगवद गीता में निहित ज्ञान मेरे लिए ऐसे है जैसे ABCD |
अच्छी positive एकाग्रचित सोच का दुनिया में कोई विकल्प नहीं | जीवन कैसे भी जीयें लेकिन अपनी सोच को हमेशा राजसी पॉजिटिव और केंद्रित बनाकर रखें | इससे सिर्फ आपका ही भला नहीं होगा बल्कि सम्पूर्ण समाज, आपके contact में आने वाला हर गुणीजन लाभान्वित होगा |
मैंने जीवन में अक्सर देखा है – किसी ने कुछ कहा नहीं कि हम उसी बात के बारे में बार बार सोचते रहते हैं और वह भी negatively | जीवन में प्रगति करने के लिए हम बार बार पीछे मुड़कर नहीं देख सकते | हमें गुजरी हुई past की बातों को नजरंदाज करना सीखना होगा | यह तभी संभव है जब हम हर समय positivity में व्याप्त रहें और लोगो को उनके कृकृत्य पर माफ करना भी सीख लें | जीवन में हर समय आगे बढ़ने के लिए हमें ऐसा करना सीखना ही होगा |
भारत में अध्यात्म में शास्त्रों के अथाह सागर में अगर डुबकी लगानी है तो हमें अपने विचारों को, अपनी सोच को केन्द्रित करना होगा | एकाग्रचित और positivity में व्याप्त होकर जब हम अध्यात्म में उतरेंगे तो हमे सही राह स्वतः ही दिख जाएगी और फिर ऐसे एकाग्रचित साधक के पीछे तो स्वयं ब्रह्म आकर मदद करने लगेंगे | मेरे साथ ऐसा ही हुआ तो आपके साथ क्यों नहीं ! दुनिया में ज्यादातर लोग सफलता की कुंजी न जाने कहां ढूंढते रहते हैं – कुंजी है एकाग्रता और positive सोच में |
2024 से 2032 तक का समय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से | Vijay Kumar Atma Jnani