आत्मा और अंहकार में क्या अंतर है ?


आत्मा ने शरीर धारण किया लेकिन खुद दृष्टा भाव में स्थित रहती है | तो शरीर यानि जीव काम क्यों करेगा ? इसलिए ब्रह्म ने शरीर को अहं (अहंकार) से युक्त किया | अहंकार में डूबा इंसान न जाने कहां कहां भागता रहता है, स्थिर नहीं रहता | अध्यात्म के रास्ते पर चलने के लिए सबसे जरूरी है हम अपने अहंकार पर अंकुश लगाएं और खुद को स्थिर करें अन्यथा चिंतन कैसे करेंगे | चिंतन नहीं होगा तो कभी ध्यान में नहीं उतर पाएंगे |

 

आत्मा के लिए अहंकार सिर्फ एक माध्यम है मनुष्य योनि को ११ लाख योनियों के लंबे सफर पर भेजने के लिए | जैसे जैसे साधक अहंकार पर कंट्रोल स्थापित करता जाता है वह ब्रह्म के नजदीक आता रहता है | यह अहंकार ही है जो जीवन में तरह तरह की व्याधियां पैदा करता है | हमारे पास छोटी कार है, हम संतुष्ट हैं | पड़ोसी जो हमारे से जूनियर पद पर कार्यरत है, रिश्वत के कमाए धन से बड़ी कार ले आता है |

 

अब हमारा अहंकार जोर मारेगा, कुछ भी करके और बड़ी गाड़ी लाओ | बस हमारा सुख चैन सब गया पानी में | न चाहते हुए भी, अहंकार के कारण हम गलत कार्यों में लिप्त हो जाएंगे और पड़ोसी से भी बड़ी कार लाने की सोचेंगे | हम अपना अहंकार कंट्रोल कर भी लें लेकिन श्रीमतीजी का क्या जो आए दिन टोकने लगती हैं और जीना दूभर हो जाता है |

 

अहंकार के चंगुल से बाहर निकलने के लिए हमें कर्म में निष्काम भाव से उतरना चाहिए |

 

Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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