परमात्मा (ब्रह्म) से आत्माओं को कोई अलग करता नहीं है, बस हो जाती हैं | कैसे ?
ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी आत्माएं अगर अपने original शुद्ध रूप में आ जाएं तो वे अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) का आकार लेंगी | इसी समायोजित आत्माओं की गठरी को ब्रह्म कहते हैं | इस शक्ति की जिसे हम ब्रह्म कहते हैं कल्पना करना अज्ञानता होगी – पूर्णतया कल्पना से परे |
पूरा ब्रह्माण्ड – आधे अंगूठे में ! यह कब होता है ? जब प्रलय होने वाली है यानि पूरा ब्रह्माण्ड सिमट कर आधे अंगूठे के आकार में आ जाएगा तो यह केंद्रित शक्ति इतनी सघन व ज्यादा होती है कि खुद को एक क्षण के लिए भी रोक नहीं पाती और Big Bang के द्वारा फिर फटती है | नतीजा – सभी आत्माएं बड़े वेग से पूरे नए ब्रह्माण्ड में फैलती चली जाती हैं |
प्रलय पूरी हुई नहीं कि नए ब्रह्माण्ड की शुरआत – ब्रह्म की सोच और क्रियाएं – हैं गजब |
यह सभी ब्रह्माण्ड में फैलती आत्माएं ब्रह्मांडीय सफर में अशुद्धियां ओढ़ लेती है | और इन्हीं अशुद्धियां को साफ करने / हटाने के लिए शुरू होता है आत्माओं का 84 लाख योनियों का सफर | जब धरती मां जैसे ग्रह अस्तित्व में आ जाते हैं (जो जीवन यापन के लिए उपयुक्त हैं) तो आत्माएं शरीर धारण करना शुरू कर देती हैं | आत्माएं पहला शरीर अमीबा का धारण करती हैं |
उपरोक्त को आप एक example से समझें –
एक बड़ी puzzle है 1000 pieces की | एक बच्चे ने उठाई और जोर से बिखरा दी | हर टुकड़ा बिखरा पड़ा है | बच्चे ने एक टुकड़े को उठाया – उसकी सही जगह ढूंढ उसे puzzle board में लगाया यानि धरती पर रामकृष्ण परमहंस को ब्रह्म से मिलने की सूझी और अध्यात्म की राह पकड़ तत्वज्ञानी हो गए | जैसे ही रामकृष्ण परमहंस ने शरीर त्यागा ब्रह्म मिलन हो गया |
यानि मोक्ष के बाद शुद्ध हुई आत्मा वापस puzzle बोर्ड में अपनी निर्धारित जगह पर आ गई | इसे ही आत्मा का परमात्मा में मिलन या आत्मा का परमात्मा में लीन होना कहा जाता है – वापस ब्रह्म से मिल जाना I जब तक धरती पर साधक को तत्वज्ञान और फिर मोक्ष नहीं होगा – वह puzzle board यानि परमात्मा (ब्रह्म) में वापस फिट कैसे होगा ?
बिना रामकृष्ण परमहंस बने आप ब्रह्म मिलन की सोच भी नहीं सकते ! और भक्त सोचते हैं गंगाजी में डुबकी लगाने से मोक्ष मिलेगा और फिर होगी ब्रह्म से मुलाकात ?
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