क्या स्वार्थपरता आत्मा का हनन करती है ?


जब से आत्मा ब्रह्म से अलग हुई वह दोबारा से जल्दी से जल्दी ब्रह्म से योग करना चाहती है | इसी क्रम में जब उसे धरती मिलती है तो वह शुद्ध होने के लिए 84 लाख योनियों का सफर शुरू कर देती है | मनुष्य योनि में आते ही वह मनुष्य को प्रेरित करती है अध्यात्म के सफर पर जाने के लिए |

 

और जो साधक अध्यात्म में उतर जाता है उसे ज्ञात पड़ता है कि पांचों इंद्रियों पर पूर्ण control स्थापित करना होगा, तभी मन पर कंट्रोल आएगा | पांचों इंद्रियों पर कंट्रोल स्थापित करने के लिए अपनी मैं (अहंकार) पर कंट्रोल पाना होगा | और स्वार्थ को बढ़ावा देती है हमारी मैं (हमारा अहंकार) |

 

आत्मा को शुद्ध रूप में लाने के लिए, साधक को पूरी मानवता के लिए जीना होगा, निष्काम भाव से कर्म करने होंगे और सबके साथ सम व्यवहार बरतना होगा | ऐसा करने के लिए हमें स्वार्थरहित जीवन जीना ही होगा |

 

Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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