जीव में ईश्वर किस प्रकार समाविष्ट है ?


इस प्रकरण को अद्वैत वेदांत की दृष्टि से देखें | जब ब्रह्माण्ड की रचना/उत्पत्ति नहीं हुई थी उस समय सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म exist करते थे | ब्रह्माण्ड बना और धीरे धीरे सूर्य और धरती प्रकट हो गए | जो आत्माएं ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही थी, जैसे ही उन्हें जीवन के योग्य धरती मिली उन्होंने शरीर धारण करना शुरू किया – पहली योनि अमीबा की (single cell formation – एक इन्द्रिय जीव) | और धरती पर जीवन चालू हो गया |

 

आत्मा क्या है – ब्रह्म का अंश | एक गेहूं का दाना एक आत्मा और पूरी ढेरी परमात्मा, ब्रह्म, ईश्वर | पूरे ब्रह्मांड की सभी आत्माएं प्रलय के समय जब 84 लाखवी योनि में आ जाती हैं तो अस्थ अंगुष्ठ (आधे अंगूठे) का आकार लेती हैं और इसी को हम ईश्वर कहते हैं | मूलतः हम सभी मनुष्य आत्मस्वरुप ही हैं लेकिन अपना शुद्ध रूप तब मिलेगा जब हम ध्यान में उतरकर 84 लाख़वी योनि में स्थापित हो जाएंगे, तत्वज्ञान प्राप्त कर लेंगे |

 

जैसे ही साधक अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए शुद्ध आत्मा बन जाता है तो उसका हमेशा के लिए ब्रह्म से मिलन हो जाता है | आत्मा के लिए मानव शरीर मात्र साधन है कर्म करने के लिए | मूल तो आत्मा और ब्रह्म ही हैं |

 

Difference between Atman and Brahman | आत्मा परमात्मा में भेद | Vijay Kumar Atma Jnani

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.