अध्यात्मिक पथ पर चलने में कठिनाइयां क्यों आती हैं ?


सबसे बड़ा भ्रम जो समाज में फैला हुआ है वह है – अध्यात्म के रास्ते पर चलने वाले बुद्ध की तरह घरबार से दूर हो जाते हैं/ या घर छोड़ हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी या उज्जैन, नासिक इत्यादि धार्मिक स्थलों में जा बस्ते हैं | अगर आप गृहस्थ हैं और भरे पूरे परिवार को बीच धार में छोड़ घर से कहीं चले जाएं तो एक साथ कितनों लोगों को तकलीफ होगी ?

 

दूसरा पहलू है – अध्यात्म में चिंतन में उतरना होता है जो अच्छे से अच्छा साधक कोशिश के बावजूद करने में दिक्कत महसूस करता है | अच्छे से अच्छे scholars भी चिंतन (ध्यान) में नहीं उतर पाते |

 

भगवान तक पहुंचने के लिए 12 वर्ष की अखंड तपस्या, ध्यान और ब्रह्मचर्य की जरूरत होती है और यहां साधक घंटो तपस्या में नहीं उतर पाता ? सोच कर देखें – स्वयं ब्रह्म ने 11 लाख योनियों का लंबा चक्रव्यूह रचा है अध्यात्म का सफर पूरा करने के लिए | अगर हम सब कुछ एक ही जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं तो मेहनत तो करनी होगी |

 

इसी कारण ब्रह्म कहते हैं हर योनि में थोड़ी थोड़ी प्रगति करते जाओ और अंततः 84 लाखवी योनि में स्थापित हो ही जाओगे | आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए हमें स्वामी विवेकानंद वाली कर्मठता devlop करनी होगी | तभी हम रामकृष्ण परमहंस के level पर पहुंच सकेंगे |

 

अगर हम महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि अर्जुन और कोई नहीं, धरती पर स्थित एक आम साधक है |

 

What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar

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