क्या हम अध्यात्म में अपनी इच्छामात्र से जा सकते हैं ? क्या यह संभव है ? क्या हम अपने साथी को आध्यात्मिक सफर के लिए तैयार कर सकते हैं ? बिल्कुल नहीं |
सब कुछ पहले से तय होता है – हमारे पिछले जन्मों का कर्मफल तय करता है हम इस जन्म में आध्यात्मिक होंगे भी या नहीं | पार्टनर को तो छोड़ ही दीजिए | ऐसा क्यों ?
मान लीजिए शुरू से अभी तक हमारी आत्मा ने 1000 मनुष्य शरीर धारण किए | इन 1000 जन्मों का जो कर्मफल होगा, वह तय करेगा कि हम इस जीवन में कब कब आध्यात्मिक होंगे |
इस तरह देखिए – इस present जीवन में हमें आध्यात्मिक रुचि नहीं और हम आजीवन सभी से कहते रहे कि अध्यात्म अगले जीवन के लिए छोड़ दिया | अगले जीवन में क्या हम अध्यात्म में कदम रखेंगे ? बिल्कुल नहीं क्योंकि पिछले जीवन का आध्यात्मिक balance तो जीरो है, सफर जीरो से ही शुरू करना होगा – बिल्कुल नई शुरुआत |
मुझे आजीवन जितने भी बुजुर्ग मिले लगभग सभी ने कहा – इस जीवन में तो पोते पोतियों, धेवते धेवतियों से फुर्सत नहीं, अगले जन्म में देखेंगे | किसका मूर्ख बना रहे हो – ब्रह्म का या खुद का ? इस जन्म में कुछ आध्यात्मिक करने की फुर्सत नहीं, अगले जन्म में करेंगे ??
अगला जन्म हमारा नहीं, हमारी आत्मा धारण करेगी – हमारे पास तो बस यही एक जीवन है | इसी कारण जब ब्रह्म ने 8 1/2 वर्ष की आयु में पूछा, मेरे पीछे आयेगा, जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से बाहर निकलना चाहता है तो बिना पलक झपकाए, अंदर से निकला – हां |
कभी 4 वर्ष की आयु के बच्चे से टीवी का remote मांग कर देखा है – जब इतना छोटा बच्चा आपकी नहीं सुन रहा तो क्या साथी आपके साथ चलने को तैयार होगा – ऐसे सफर पर जिस सफर का आपको खुद अतापता नहीं ?
Right Age to start a Spiritual Journey | आध्यात्मिक ज्ञान लेने की सही उम्र | Vijay Kumar Atma Jnani