ईश्वरीय संदेश किस प्रकार मिलते हैं ?


आध्यात्मिक सफर में मेरी ५ वर्ष की आयु से ही ब्रह्म से वार्तालाप चालू हो गई | मेरे साथ कुछ घटा जिसके कारण ५ वर्ष की उम्र में ही मेरी भगवान में पूर्ण श्रद्धा (१००%) हो गई | सच के रास्ते पर मैं चलता ही था कोई झूठ बोले तो बर्दाश्त नहीं, चाहे वो मेरे पिता या दादा ही क्यों न हों | सबसे लड़ जाता था |

 

एक दिन दादी से पूछा, दादीजी, मुझे सच बहुत अच्छा लगता है | अगर किसी को झूठ बोलते पकडूं तो क्या करूं | दादी बोली, दाना पानी लेकर चढ़ जाओ | मैंने कहा, अगर बड़े हों, तो बोली, तब भी | उसके बाद मैंने मुड़ कर नहीं देखा | (दादी का लाख लाख शुक्रिया) |

 

सच का साथ मिलने के कारण हृदय से आती आत्मा की आवाज़ मैं भलीभांति सुन सकता था | शुरू में तो मालूम नहीं चला अंदर से कौन बोल रहा है लेकिन मैं आश्वस्त था क्योंकि उस आवाज़ ने एक बार भी धोखा नहीं दिया था |

 

सच की ताकत से जल्द पहचान के कारण मैं भौतिक जीवन में थोड़ा उग्र हो गया | सच और केवल सच मुझे कुबूल था | जब पहली बार गीताप्रेस, ऋषिकेश गया और उनकी भाषा टीकाओं में कुछ चित्र देखें, सब समझ में आ गया, यह आवाज़ आत्मा की ही थी |

 

गीताप्रेस के चित्रों पर विचार, चिंतन करने पर अहसास हुआ कि हृदय में स्थित आत्मा और कोई नहीं भगवान कृष्ण ही हैं | फिर क्या था, मैंने हृदय से आती आवाज़ पर पूरा ध्यान मोड़ दिया | मुझे लगा भगवद गीता पढ़ने की जरूरत क्या है जब सारथी हृदय में बैठा है | इस हृदय से आती आवाज़ के कारण ही मैंने ३७ वर्ष की आयु में ३ अगस्त १.४५ सुबह ब्रह्म का साक्षात्कार किया |

 

Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar

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