कुछ नहीं, हर सच्चा आध्यात्मिक साधक हमेशा अकेले ही चलेगा | कारण ? आध्यात्मिक सफर अंदरूनी सफर हैं आत्मा तक पहुंचने का जो हृदय में बैठी है | अध्यात्म में साधक ध्यान में उतरता है जो सिर्फ चिंतन के द्वारा हो सकता है | चिंतन करने के लिए भीड़ की आवश्यकता नहीं | समय समय पर जो प्रश्न उठेंगे उन का उत्तर भी स्वयं ढूंढ़ना होगा |
आज के समय में सच्चा सत्संग करने के लिए एक भी इंसान नहीं मिलता | मुझे तो 63 साल में आज तक नहीं मिला | जितने भी सच्चे साधक मुझ से जुड़े हैं, सबसे पूछ कर देखा – उन्हें भी सत्संग करने के लिए दूसरा कोई नहीं मिला | अध्यात्म बेहद गूढ़ विषय है – एक ही सोच के दो साधक मिलना बेहद कठिन है |
सत्संग यानि बैठकर आपस में विचार विमर्श करना और अपने अंदर रुके हुए प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ना | सत्संग वह नहीं जो आजकल देखने को मिलता है | सत्संग कभी भी एक तरफा नहीं होता – विचारों का आदान प्रदान सत्संग होता है | इसी कारण अध्यात्म में कभी गुरु नहीं बनाना चाहिए | आपकी होती हुई प्रगति भी रुक जाएगी | भला चिंतन में कोई ब्राह्म व्यक्ति कैसे मदद करेगा ? तपस्या में खुद अकेले ही उतरना होगा |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani