बात सम्पूर्ण वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में निहित ज्ञान को पढ़ने या समझने की नहीं है, अध्यात्म में हमें कुछ ज्ञान भीतर नहीं लेना होता है, हमें मूलतः ज्ञान के प्रकाश से अंदर के अज्ञान के अन्धकार को काटना होता है | हमारे मस्तिष्क का 97 ~ 99% हिस्सा जन्म से बंद है | ज्ञान के प्रकाश से हमें कर्मों की पूर्ण निर्जरा करनी है जिससे बंद पड़ा मस्तिष्क खुल जाए और हम मस्तिष्क को 100% capacity पर इस्तेमाल कर सकें |
100% मस्तिष्क खुलने का मतलब है कुण्डलिनी की पूर्ण जागृत अवस्था, तत्वज्ञान हो जाना, सहस्त्रार खुल जाना, कैवल्यज्ञानी हो जाना, ब्रह्म से साक्षात्कार | सीधे शब्दों में – महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बन जाना |
यह सब करने के लिए ब्रह्म ने मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का सफर (लगभग 1 करोड़ वर्ष की अवधि) निमित्त की है | सच्चा साधक अगर 12 वर्ष की तपस्या का राज जान ले तो हमें रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण की अवस्था तक पहुंचने में सिर्फ 14 साल लगेंगे |
11 लाख में हम किसी भी योनि में स्थापित हों, हम 12 ~ 14 वर्ष की तपस्या के बाद ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकते हैं | ऐसा संभव है | मैं इसका जीता जागता सबूत हूं | 5 वर्ष की आयु में आध्यात्मिक सफर शुरू हो गया | 8 1/2 साल की आयु में भगवान से वादा भी हो गया उसके पीछे आ रहा हूं | भौतिक जीवन के साथ साथ अंदर की journey भी शुरू हो गई |
लगभग 22 वर्ष की उम्र में पत्नी से कहा, जो बच्चे करने हैं कर लो और 24 वर्ष की आयु से 12 वर्ष का अखंड ध्यान और अखंड ब्रह्मचर्य शुरू हो गया | 37 वर्ष की आयु में 3 अगस्त सुबह 1.45 am पर ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार | ठीक 4.15 am पर प्रभु अंतर्धान हो गए |
5 वर्ष की आयु से मैंने एक बार भी वेद, उपनिषद या भगवद गीता नहीं देखी लेकिन ब्रह्म का साक्षात्कार होते ही ऐसा लगा जैसे पिछले किसी जन्म में मैंने ही उपनिषदों और भगवद गीता का ज्ञान प्रतिपादित किया हो | सब कुछ ABCD की तरह | आज मैं भगवद गीता के ऊपर नॉनस्टॉप 365 दिन का प्रवचन कर सकता हूं (बिना किसी शास्त्रीय मदद के) |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani