आज के कलियुग में अगर सन्यासी बनकर रहना है तो घर में रहकर क्यों नहीं ? सिद्धार्थ गौतम ने भी कोशिश की थी – घर भी छोड़कर चले गए और 39 सालों तक भटकने पर भी कुछ नहीं मिला | थककर बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर 68 साल की उम्र में 12 वर्ष की गहन तपस्या की | तब जाकर 80 वर्ष की आयु में तत्वज्ञान प्राप्त हुआ और 81 में निर्वाण लिया |
मेरे मन में 5 वर्ष की आयु में भगवान से मिलने की इच्छा जागृत हुई | लगभग 15 वर्ष की आयु के करीब मां से हिमालय में जाने की इजाज़त मांगी तपस्या में जो उतरना था | मां नहीं मानी | कोई रास्ता न देख घर पर रहकर ही अध्यात्म में पूरी तरह उतर गया | ध्यान की पद्धति जल्दी ही समझ आ गई | बस फिर क्या था – दिन रात अंदरूनी ध्यान शुरू हो गया |
24 के लगभग 12 वर्ष की ब्रह्मचर्य की तपस्या शुरू की | और अंततः 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हो गया | जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब मैं सबसे शोरगुल के समय AIIMS, दिल्ली के चौराहे पर बैठ जाता | उस समय जो ध्यान होता – उससे बेहतर ध्यान जीवन में कभी नहीं हुआ | शोर होते हुए भी मैं शोर से अनजान अंदर खो जाता | अब तो flyover बन गया है |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani