अध्यात्म ही तो वह एकमात्र क्षेत्र है जहां किसी का बंधन नहीं – न माता पिता और बुजुर्गों का, भाई बहनों का और न ही रिश्तेदारों और समाज का | सिद्धार्थ गौतम को लगा कि राजसी परिवार बंधन है तो झट छोड़ चल दिए – पत्नी और बच्चे की इजाज़त लेना भी जरूरी नहीं समझा | ब्रह्म ने system ही ऐसा बनाया है – राजा हो या रंक – बराबर की हिस्सेदारी दी है सभी को |
सभी इंसान स्वच्छंद will power से लैस होकर स्वयं के लिए कोई भी decision ले सकते हैं | मैं जब 5 वर्ष का था तो घर में दादाजी, दादीजी, माता पिता सब को खुलकर कह दिया भगवान की खोज में जाऊंगा | कोई आढ़े हाथों आया तो घर को हमेशा के लिए छोड़ चला जाऊंगा | ताज्जुब की बात – किसी ने एक बार भी नहीं टोका | शायद इसलिए कि दादाजी घर में सन्यासी की तरह रहते थे |
पूरे आध्यात्मिक सफर में कोई भी राह का रोड़ा नहीं बन सका | किसी गैर ने टोका भी तो क्या – मुढ़ कर नहीं देखा | भारतीय दर्शन में आवश्यक शास्त्रों की कमी नहीं | एक प्रकाशन गीताप्रेस से ही सब टीकाएं मिल जाएंगी | जिस इंसान से कुछ भी सीखने को मिला – उसे मन ही मन गुरु मान लिया | 24 घंटे मेरे होते – पूरी planning मेरी फिर दिनचर्या को भंग करता कौन ?
स्कूल भी जाता, घर के सारे कामकाज करता – और आध्यात्मिक चिंतन के लिए समय भी निकाल लेता | जब जिंदगी का असली goal भगवान की खोज था – तो भटकता कैसे ? दुनिया में वही साधक भटकते हैं जिनका जीवन में कोई fixed लक्ष्य नहीं होता | मैंने तय कर रक्खा था इसी जीवन में भगवान के दर्शन भी करूंगा और बातें भी – और ऐसा ही हुआ जब 1993 में ब्रह्म के साथ 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार हुआ |
What was the role of Arjuna in Mahabharata? आज का अर्जुन कौन आध्यात्मिक परिवेश में | Vijay Kumar