क्या ज्ञान गरु से लेना चाहिए या स्वयं से ?


सत्य का मार्ग पकड़ कर अगर हम हृदय से आती खुद की आत्मा की आवाज़ सुन सकते हैं तो अन्दर से आती आत्मा की आवाज़ से बेहतर कुछ भी नहीं | मैंने ५ वर्ष की आयु से अन्दर से आती इस आत्मा की आवाज़ की गाइडेंस के बूते पर अपना आध्यात्मिक सफर ३७ वर्ष की आयु में पूरा कर लिया जब ३ अगस्त की सुबह १९९३ में ब्रह्म ने साक्षात दर्शन दिए और पूरे २ १/२ घंटा मेरे साथ रहे |

 

आध्यात्मिक सफर एक अंदरुनी सफर है जिसमें गुरु की कोई आवश्यकता नहीं | एक आम साधक को ऐसा गुरु जो तत्वज्ञानी हो मिलेगा भी कहां से ? १९५० में महर्षि रमण चले गए | उनसे पहले रामकृष्ण परमहंस थे |

 

Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar

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