आत्मसाक्षात्कार कठिन नहीं होता क्योंकि वह तो प्रभु देते हैं, जब भी मिलेगा ? कठिन है अध्यात्म की राह पर चलना | 63 साल के आध्यात्मिक सफर में पूरी दुनिया में मुझे आज तक 10 लोग नहीं मिले जो अध्यात्म शब्द का सही मतलब बता सकें, सफर तो बाद में ही करेंगे | कोई ध्यान में उतरना ही नहीं चाहता – सबको फल पहले दिखना चाहिए और सब कुछ इसी जीवन में मिलने की गारंटी |
अध्यात्म एक अंदरूनी सफर है – वह भी अनजान डगर पर | जितने साधक उतनी ही अलग अलग राहें | सारा खेल विश्वास – ब्रह्म में पूर्ण श्रद्धा का है | आजकल लोग माता पिता को न जाने क्या क्या कह देते हैं – भगवान जो दिखता नहीं उस पर कैसे विश्वास कर लें |
फिर 12 वर्ष की ध्यान (चिंतन) और ब्रह्मचर्य की अखंड तपस्या – जानते हुए महर्षि विश्वामित्र जैसे ऋषि फेल हो गए तो हमारी क्या बिसात | लोगों के अंदर अज्ञात सफर का डर उन्हें इस सफर पर जाने से रोकता है | महावीर और बुद्ध ने जो 12 वर्ष की तपस्या की – बिल्कुल उसी तपस्या में हमें उतरना पड़ेगा |
किसी जैन मंदिर में जा कर तो देखिए – कितने डरावने चित्र दीवारों पर लगे मिलेंगे | जो साधक है उसे पेड़ से लटका दिखाएंगे और उसके मुंह में अमृत टपक रहा है | लेकिन उस अमृत की कीमत – पेड़ को एक विशालकाय हाथी गिराना चाहता है, आपके पैरों के नीचे – गड्ढे में विशालकाय भयंकर नाग मुंह खोले बैठे हैं, टपकते अमृत के कारण मधुमक्खियों का एक बड़ा छत्ता पेड़ पर लगा है इत्यादि |
इतना भयंकर मंजर देखकर कौन साधक अध्यात्म की राह पर जाना चाहेगा ? यह चित्र यह दिखाने के लिए लगा है कि 12 वर्ष की तपस्या में महावीर ने क्या क्या कष्ट नहीं झेले – लेकिन जैन समाज यह भूल जाता है कि हर जैन साधक में महावीर बनने कि चेतना हमेशा से मौजूद है |
इस धरती पर कोई भी इंसान अध्यात्म कि अनजान राह पर चलने के लिए स्वतंत्र है – बस स्वामी विवेकानंद वाली जिद और आत्मविश्वास चाहिए |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani