ज्यादातर लोग अध्यात्म में उतरने से डरते हैं – क्यों ? अनजान डगर पर कोई नहीं जाना चाहता | फिर फल की इच्छा भी नहीं करनी – बस चलते जाना है | हर आध्यात्मिक साधक को अध्यात्म का अंदरूनी सफर खुद ही तय करना होता है | मुझे अच्छी तरह याद है जब कुण्डलिनी जागृत होना शुरू होती है तो बेहद भयानक सर्प आपके खयालों में आंखों के सामने हर समय रहते हैं |
वह समय और experience इतना भयावह होता है कि बर्दाश्त से बाहर | अगर आध्यात्मिक साधक उस समय दृढ़ता से काम नहीं लेगा तो धैर्य खो देगा | जब मेरे से वे कुण्डलिनी सर्प बर्दाश्त नहीं हुए तो 15 वर्ष की आयु में मैंने अपनी चारपाई माता पिता के कमरे में शिफ्ट कर ली | एक महीने से ऊपर लगा मुझे उन कुण्डलिनी सर्पों के डर को खत्म करने में |
फिर अध्यात्म में आपके अंदर यह अहसास होता है कि मूलतः आप एक आत्मा हैं शरीर नहीं – तो डर किससे ? ऊपर से ब्रह्म का हाथ हमेशा सिर पर – तो डर वैसे ही एक दिन पूर्णतया गायब हो जाएगा | अध्यात्म पग पग पर आपको आत्मा होने का अहसास दिलाएगा | और आत्मा को डर कैसा ?
How does it feel when kundalini awakens? कुंडलिनी जागृत होने पर क्या होता है? Vijay Kumar Atma Jnani