कर्म के फलों को कैसे त्यागे ?


यह संभव हो पाता है जब हम सत्य के मार्ग पर चलते हुए खुद के लिए नहीं सारी दुनिया के लिए जीते हैं | ऐसा करने से धीरे धीरे हमें यह अहसास होने लगता है कि मनुष्य शरीर आत्मा ने धारण किया है, शरीर की मालिक तो वह है और हम मनुष्यों को कर्म, निष्काम भाव से करते हुए जीवन में आगे बढ़ना है | क्यों ? क्योंकि जो भी कर्म मनुष्य करेगा, फल तो मालिक (आत्मा) का ही हुआ | नहीं ?

 

असल में मनुष्य का जीवन में है ही क्या ? सांस भी अपनी नहीं | जिस दिन सांस रुकी, जीवन की गति रुकी, और जो कुछ हम अपना कह/समझ रहे थे वो सब तो मृत्यु के साथ छुट गया | साथ गया तो सिर्फ पुण्यकर्म या पापकर्म का निचोड़ (balance), जिसके आधार पर आत्मा नया शरीर धारण करेगी | जीवन का निष्कर्ष यही है हम हर समय पुण्य कर्म करें और वह भी निष्काम भाव से |

 

5 वर्ष की आयु से दुनियां के लिए जीया | 63 साल गुजर गए, आज भी एक एक पल धरती मां को समर्पित है | 1997 में भारत में इंटरनेट आया | लगभग 85 लाख (अपना सम्पूर्ण balance) मानवता की सेवा में लगा दिया | उस समय इंटरनेट का monthly telephone बिल 25,000/= महीना आता था | कमाई का एक भी जरिया नहीं | ब्रह्म की कृपा से गाड़ी चलती रही |

 

भारत को देखिए, 125 करोड़ भरतवंशी लेकिन 1997 से आज तक donation 10 लाख भी नहीं | ब्रह्म और धरती मां की खातिर जीया हूं, सब कुछ उन्हीं को समर्पित है इसीलिए शिकायत किसी से भी नहीं | 5 वर्ष की आयु से फल का खयाल एक बार भी मन में नहीं आया, एक बार भी | यह ताकत है निष्काम भाव से कर्म करने की |

 

Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani

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