हम जो भी बोलते हैं कहते हैं वह मानसिक तरंगों में परिवर्तित हो ब्रह्माण्ड में घूमता रहता है | एक भी विचार – एक भी वाणी स्वतः नष्ट नहीं होती | इसलिए कहा जाता है अच्छा बोले क्योंकि वह शब्द तरंगे बन वातावरण में हमेशा मौजूद रहते हैं | हमारे मुंह से निकला एक भी अपशब्द खत्म नहीं होता – हवा में तरंगों के रूप में तैरता रहता है |
यह मानसिक तरंगे ही तो हैं जिसके सहारे इंसान धीरे धीरे ऊपर उठता है | कृष्ण जिन मानसिक तरंगों पर रहते थे वह सबसे उच्च level की हैं | उसके बाद महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और फिर महर्षि रमण | और उसके बाद आता है जनमानस जो नीचे लेवल की मानसिक तरंगों पर वास करता हैं |
हमारा brain (मस्तिष्क) तो भौतिक जगत की वस्तु है – एक दिन शरीर की मृत्यु के समय जला दिया जाएगा लेकिन उन मानसिक तरंगों का क्या जो हवा में तैर रही हैं | इस कारण आत्मा को हर जीवन को जोड़ने में कठिनाई नहीं होती | आत्मा बिना विघ्न एक के बाद एक शरीर बदलती रहती है |
इस योनि में अगर हम अपने पिछले जन्म के मानसिक लेवल पर पहुंच सकें तो पिछले जन्म की हर बात को याद कर सकते हैं |
Samudra Manthan ki gatha | समुद्र मंथन की गाथा | Vijay Kumar Atma Jnani