दुख की परिभाषा क्या है ? जब हम evolve होते हैं, जीवन में आगे बढ़ते हैं, विकसित होते हैं तो जीवन में सुख और दुख दोनों मिलेंगे | यह प्रभु का नियम है |
जब एक लोहार कोई औजार बनाता है तो पहले उस लोहे की छड़ को गर्म करता है और फिर पीट कर आकार में लाता है और जब औजार बन कर तैयार हो जाता है तो उसे ठन्डे पानी की बाल्टी में डाल देता है | जब तक लोहे की छड़ आग में तपती रही तो sufferings दुख का समय और जब ठन्डे पानी की बाल्टी में आ गई तो happiness सुख का आनंद |
सुख और दुख जीवन की वो प्रक्रियाएं हैं जिसमें तप कर इंसान खुद को जीवन में आगे बढ़ाता है | अगर हम जीवन के हर प्रसंग में positivity में व्याप्त रहें तो दुख हमें कभी परेशान नहीं कर सकेंगे | हो सकता है पिछले जीवन में ऐसे कर्म कियें हो कि फल इस जन्म में भुगतना पड़ रहा है |
जब १ करोड़ एक क्षण के देने पर भी हम past में नहीं जा सकते तो जीवन में पीछे मुड़ कर देखने का कोई औचित्य नहीं | और रही भगवान की सेवा, तो भगवान कहां कहते हैं मेरी सेवा करो | भगवद गीता में कृष्ण के द्वारा ब्रह्म क्या कहते हैं – पहले खुद का उद्धार करो यानी अध्यात्म का मार्ग पकड़ कर मोक्ष प्राप्त करो | यही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है |
जब हम अध्यात्म में व्याप्त होकर निष्काम कर्म में उलझेंगे तो औरों का भला तो होगा ही, हम भी अपने कर्मों की निर्जरा कर सकेंगे | अगर हमारा ध्येय अध्यात्म नहीं तो हमें किसी भी कार्य में निष्काम भाव से उलझना चाहिए | इससे दुख हमें कभी तंग नहीं करेंगे |
Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani