कर्मयोगी शब्द मूलतः उस साधक के लिए इस्तेमाल होता है जो हर कर्म को निष्काम भाव से करता है | निष्काम भाव यानि कर्म तो करना लेकिन कर्मफल के पीछे नहीं भागना | हर योगी को कर्मबंधन के चक्रव्यूह से बाहर निकलना होता है और वह यह तभी कर सकता है जब हर कार्य को निष्काम भाव से करे – अन्यथा कर्मों की निर्जरा भी नहीं होगी और कर्मबंधन बढ़ते जाएंगे |
राजा जनक, स्वामी विवेकानंद और JRD Tata उच्च कोटि के कर्मयोगी थे | तीनों ही कभी भी कर्मफल की न तो चिंता करते थे न ही पीछे भागते थे | तीनों का एक ही मकसद होता था – फल की इच्छा किए बिना लक्ष्य को प्राप्त करना | देना तो आखिर ब्रह्म का कार्यक्षेत्र है – उसमें दखलंदाज़ी कैसी ? कर्मफल प्रारब्ध से भी बंधा है |
सच्चा कर्मयोगी निष्काम कर्मयोगी भी होता है – तभी वह आध्यात्मिक उन्नति कर पाता है |
Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani