एक सफल कर्मयोगी वह साधक होता है जो हर कर्म को निष्काम भावना से करे – जैसे राजा जनक, स्वामी विवेकानंद और JRD Tata. इन तीनों में राजा जनक तो गृहस्थ कर्मयोगी थे जबकि स्वामी विवेकानंद एक बाल ब्रह्मचारी सन्यासी और JRD Tata का अध्यात्म से कोई नाता न होते हुए भी वह एक उच्च दर्जे के कर्मयोगी थे |
राजा जनक एक तत्वज्ञानी थे – उन्होंने महर्षि याज्ञवल्क्य के संरक्षण में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर बख़ूबी अपने शासन की कमान भी संभाले रखी| गृहस्थ होते हुए राजा जनक ने एक उच्च कोटि का कर्मयोगी बनकर दिखाया – तभी उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ | राजा जनक कभी भी अपना राजकाज कर्मों से बंधकर नहीं करते थे – निष्काम कर्मयोग के वह पूर्ण ज्ञाता थे |
स्वामी विवेकानन्द ने स्वाध्याय करते समय निष्काम कर्मयोग के सभी नियमों का कठोरता से पालन किया | जब साधक कर्म इस भावना से करता है कि कर्मफल तो हमेशा आत्मा का हुआ, तो कर्म उस साधक को कभी बांधेगे नहीं | आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए एक पूर्ण कर्मयोगी बनना अनिवार्य है और स्वामी विवेकानन्द का जीवन लक्ष्य ही तत्वज्ञानी बनना था |
JRD Tata एक महान कर्मयोगी थे | वह हमेशा दूसरों के लिए जीते थे | व्यापारिक जगत में JRD Tata से बेहतर कर्मयोगी और कोई नहीं | पूरे Tata Organization का एक ही मूल मंत्र है – दुनिया के लिए जियो – सभी को फलनें फूलनें का अवसर मिलना चाहिए | Tatas कभी व्यवसाय के लिए नहीं जीते – वह तो देश की समृद्धि और खुशहाली के लिए जीते हैं |
आने वाले समय में आप देखेंगे – Tatas दुनिया का सबसे बड़ा परोपकारी संगठन बन जायेगा, सबसे बड़े कारोबारी होने के बावजूद | उस समय उन का नारा होगा – वसुधैव कुटुंबकम् | धरती पर हर इंसान को JRD Tata की तरह एक उच्च श्रेणी का कर्मयोगी बनने की चेष्टा करनी चाहिए|
Nishkama Karma Yoga | निष्काम कर्म योग का महत्व | Vijay Kumar Atma Jnani