हम जीवन के किसी भी पड़ाव में हों, काम अथवा कर्म करना हमारी नियति है क्योंकि कर्म के बिना गुजारा नहीं | सांस लेना भी एक प्रकार का कर्म ही है | अकर्मण्यता कोई बचने का रास्ता नहीं, कर्म तो करना ही पड़ेगा | Student हैं तो पढ़ना पड़ेगा, और गृहस्थ हैं तो रोटी रोज़ी की व्यवस्था तो करनी ही होगी | जब कर्म करने में उलझे न हों तो अध्यात्म में उतर सकते हैं, धार्मिक उपक्रमों में नहीं |
भारतीय दर्शन शास्त्र कहते हैं हमारे जीवन का लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति, जन्म और मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए निवृत्त हो जाना | यह संभव है जब हम आध्यात्मिक सफर पर जाएं न कि धार्मिक रीति रिवाजों में उलझे रहें | अध्यात्म यानि ज्ञानयोग के द्वारा अपने अंदर उमड़ते विचारों के सैलाब को जड़ से खत्म करें और निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुंच जाएं और अंततः मोक्ष हो जाए |
भगवान को पाना है तो पूजा पाठ की हमारे जीवन में कोई जगह नहीं | क्यों ? अध्यात्म कहता है भगवान मंदिरों में मूर्तियों में नहीं बसते, बल्कि हमारे हृदय में आत्मा के रूप में विराजमान हैं | अगर भगवान को पाना है तो प्राणायाम द्वारा हृदय तक पहुंचो |
Is it necessary to go to temple to Realize God | भगवान की प्राप्ति के लिए क्या मंदिर जाना आवश्यक है