आखिरी साधक जिसने खुद की कुण्डलिनी पूरी जागृत की और तत्वज्ञान प्राप्त कर ब्रह्म में लीन हो गए वह थे महर्षि रमण जो 1950 में शरीर त्याग गए | अगर वो आज होते भी, तो गुरु बनना स्वीकार्य होता या नहीं doubtful है | अगर साधक खुद को सत्य के मार्ग पर स्थापित कर ले तो मार्गदर्शन के लिए उचित गुरु मिल भी सकते हैं और नहीं भी |
महर्षि रमण चारपाई पर लेटे रहते थे और साधकों के प्रश्नों के उत्तर देते जाते थे | अगर chief minister भी आ जाए तो queue तोड़ने की सख्त मनाही थी | अगर किसी देश का president या prime minister भी आ जाए तो queue में लगना पड़ता था | यही अध्यात्म है – यहां कोई छोटा बड़ा नहीं |
नारी के लिए कुण्डलिनी जागरण के रास्ते पर चलना टेढ़ी खीर है – क्यों ?
1. भारतीय इतिहास में 10,800 वर्षों में सिर्फ और सिर्फ 2 नारियों को कुण्डलिनी जागृत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ – संत गार्गी और मैत्रैयी (जो महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थीं) |
2. शास्त्रानुसार महिलाओं के लिए कुंडली जागृत करना इसलिए कठिन है कि वे मोह से ओतप्रोत होती हैं | मोह भी इतना कि खुद के बच्चों को छोड़, सड़क पर कोई रोता बच्चा नजर आ जाए तो मुड़कर एकबार पूछेंगी जरूर | क्या कभी किसी पुरुष को ऐसा करते देखा है ?
3. मोह की जड़े काटना महिलाओं के लिए अत्यंत कठिन है इसीलिए शास्त्रों में इस बात का जिक्र भी आता है कि महिलाओं को कुण्डलिनी जागरण से पहले पुरुष योनि में आना होगा |
4. लेकिन अगर किसी नारी में गार्गी जैसी तीव्रता और मैत्रैयी जैसी लगन और विश्वास हो तो कोई वजह नहीं कि धरती पर तीसरी महिला को कुण्डलिनी जागरण का अवसर न मिले |
5. कुण्डलिनी जागरण के लिए 12 वर्ष का ब्रह्मचर्य (फिजिकल + मानसिक) करना होगा |
6. 12 वर्ष की गहन तपस्या में उतरना होगा जैसा महावीर और बुद्ध ने किया | तभी चिंतन के माध्यम से ध्यान संभव है |
अध्यात्म मेरे खून में है | अगर कोई साधक ध्यान में चिंतन के रास्ते उतरना चाहता है तो मेरे ब्रह्मचर्य और ध्यान के विडियोज काफी हैं | मुझे तो बेहद खुशी होगी चलो महर्षि रमण के बाद कोई तो इस रास्ते पर चला |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani