सांसारिक जीवन में रहते हुए कुंडलिनी जागरण करना क्या सही है ?


ब्रह्म ने 11 लाख मनुष्य योनियां दी हैं और साथ में दिया है will power और विवेक, जिसका इस्तेमाल कर मनुष्य जीवन की किसी भी अवस्था में कुण्डलिनी जागरण शुरू कर सकता है |

 

हम चाहे 5 वर्ष के बालक हों, 25 वर्ष के ब्रह्मचारी या शादीशुदा या 80 वर्ष के बुजुर्ग – कुण्डलिनी जागरण की क्रिया में सभी बिना रोक टोक उतर सकते हैं | हमें ध्यान बस यह रखना है – जीवन एक ही है | अगला जीवन तो आत्मा का होगा हमारा नहीं | मृत्यु के बाद आत्मा नया शरीर धारण करेगी |

 

कुण्डलिनी जागरण करने से पहले सोच लें आप क्या करने जा रहे हैं – आप उसी रास्ते पर चलेंगे जिस पर चलकर महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण ने तत्वज्ञान प्राप्त किया | मंज़िल एक ही है – रास्ते अलग अलग हो सकते हैं | पूर्ण कुंडली जागरण यानि निर्विकल्प समाधि की अवस्था |

 

महात्मा बुद्ध वाली गलती दोहरानी नहीं है कि सोती हुई पत्नी और बच्चे के पैर छुए और छूमंतर | ब्रह्म ने बुद्ध को बहुत भयंकर दंड दिया इसके लिए | कर्मों की पूर्ण निर्जरा करनी होती है | बिना पत्नी और बच्चों की इजाज़त के हम घर छोड़ ही नहीं सकते | जब मां ने घर छोड़ने की इजाज़त नहीं दी तो मैंने घर में रहकर ही सब कुछ प्राप्त किया |

 

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