प्राचीन समय में, राम के समय में भारत में शिक्षा का माध्यम गुरुकुल था जिसे गुरु – शिष्य परंपरा भी कहते थे | ५ वर्ष की कच्ची उम्र में बच्चा गुरुकुल के सुपुर्द कर दिया जाता था १० से १५ वर्षों के लिए | गुरुकुल के आचार्यों के सानिध्य में बच्चा शिक्षा ग्रहण करता था | पूरी शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य/गुरुकुल के मुख्य आचार्य की होती थी | माता पिता से फूटी कौड़ी भी नहीं ली जाती थी |
गुरुकुल परंपरा से बेहतर शिक्षा पद्धति हो ही नहीं सकती | यह गुरुकुल की जिम्मेदारी होती थी कि बच्चे का आंतरिक प्रशिक्षण हो |
जिस कला के लिए भगवान ने उस बच्चे को बनाया है, उस कला को पहचान और उसका प्रशिक्षण आचार्यों की जिम्मेदारी होती थी | कोई जबरदस्ती नहीं जैसा आज के समय में होता है | आचार्य की परख और शिष्य की रजामंदी के बाद बच्चे को उस विषय में ट्रेनिंग दी जाती थी | शस्त्रों में रुचि है तो शस्त्र विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी जिससे बच्चा बड़े होकर शीर्ष का सेनानायक बन सके |
शास्त्रों में रुचि तो वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में निहित ज्ञान पढ़ाया जाता था | आज के समय अंग्रजों द्वारा थोपी गई macauley पद्धति अपनाई जाती है | कुछ समय पश्चात २०३४ तक गुरुकुल परम्परा दोबारा पूरे भारत में फ़ैल जाएगी | हर नागरिक के आंतरिक विकास की जिम्मेदारी हमेशा राज्य/शासन की होती है, माता पिता की नहीं |
कल्कि अवतार के आने का इंतज़ार तो करें |
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