आध्यात्मिक गुरु (एक ऐसा तत्वज्ञानी जो 84 लाखवी योनि में स्थापित हो) तो मिलेगा नहीं | महावीर बुद्ध चले गए, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण भी physically available नहीं | लेकिन सब के कहे वचन तो शास्त्रों, पुस्तकों में उपलब्ध हैं | सत्य के मार्ग पर चलकर कोई भी साधक इतने विशाल शास्त्र भंडार से तत्व के मोती तो चुग सकता है, बंधन कहां है ?
धर्म (यानी religion, आज के समय में लोग धर्म को ही religion कहते हैं जबकि दोनों अलग हैं) के रास्ते पर चलकर आज के समय में कोई भी साधक तत्वज्ञानी नहीं बन सकता | जब रामकृष्ण परमहंस ने देखा मां काली की भक्ति के द्वारा उद्धार नहीं तो उन्होंने भक्तियोग को छोड़ ज्ञानयोग का रास्ता पकड़ लिया |
ज्ञानयोग यानी ध्यान में उतरना चिंतन के माध्यम से | चिंतन हमें स्वयं ही करना होता है, इसमें धार्मिक गुरु क्या मदद करेगा | अगर हम प्रभु को पाना चाहते हैं, अगर हम कुण्डलिनी जागरण कर मोक्ष द्वार तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें अध्यात्म की मदद लेनी होगी, न कि धार्मिक अनुष्ठानों की | और आध्यात्मिक गुरु मिलेगा उसके बिखेरे हुए ज्ञान में जो टीकाओं इत्यादि में उपलब्ध है |
Example के तौर पर – स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित काफी पुस्तकें हैं और काफी दूसरे लेखकों द्वारा लिखित | हमें विवेक का इस्तेमाल करके सत्य (तत्व) को झूठ (असत्य) से अलग करना होगा | तभी हमें सही राह मिलेगी |
अर्जुन के रथ और सारथी कृष्ण का रहस्य | Vijay Kumar… the Man who Realized God in 1993 | Atma Jnani