भारतीय दर्शन के इतिहास में ऐसे गुरु दो ही हुए हैं जिनके अंदर सामर्थ था अपने सामर्थ शिष्य को ब्रह्म के दर्शन कराने का | पहले ऋषि Yajnavalkya जिन्होंने सबसे बड़े उपनिषद बृहदारण्यक की रचना की | उनके दो शिष्य हुए | राजा जनक (सीता के पिता) और उनकी दूसरी पत्नी Maitreyi. दोनों शिष्यों ने ऋषि Yajnavalkya के सानिध्य में तत्त्वज्ञान प्राप्त कर ब्रह्म के दर्शन किए |
तत्वज्ञानी महर्षि रमण १९५० में शरीर त्याग गए | बचा कौन ? आज के कलियुग में ब्रह्म का साक्षात्कार अत्यंत कठिन है असंभव नहीं | फिर आध्यात्मिक सफर अंदरूनी सफर है | गुरु की आवश्यकता ही नहीं | ध्यान चिंतन के माध्यम से किया जाता है |
परमात्मा ब्रह्म के दर्शन के लिए ब्रह्म ने १ करोड़ वर्ष की अवधि यानी मनुष्य रूप में ११ लाख योनियों का चक्रव्यह रचा है | ब्रह्म के दर्शन हम इसी जन्म में कर पाएंगे या किसी अन्य जन्म में यह हमारी आध्यात्मिक प्रगति पर निर्भर है |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani