जब मैं छोटा था तो धार्मिक / आध्यात्मिक कहानियों में बेहद दिलचस्पी थी | उस समय अध्यात्म का मतलब न मालूम था न ही ये शब्द सुना था | हां, धार्मिक होना अच्छी बात है यह सुन रखा था | तो जो भी बुजुर्ग (बुजुर्ग मैं उसको मानता था जो उम्र में बड़ा हो और ज्ञानवान हो) कहानियां सुनाने में सक्षम होता उसकी तो आफत आ जाती |
नानाजी के यहां गर्मियों की छुट्टियों में लगभग 2 1/2 महीने के लिए जाया करते | उनके बड़े से घर में एक मुनीम रहते थे – नाम था भगतजी | काम कुछ होता नहीं था तो पहुंच जाते भगतजी के पास | बातों बातों में मालूम चला भगतजी को बहुत सारी धार्मिक कहानियां मालूम हैं | बैठ गए उनके पास – तो सुनाओ |
भगतजी कहते अभी खाना बना रहा हूं, समय नहीं है | बस फिर क्या था – खाना बनाने में भगतजी की पूरी मदद – बेहद खुश होकर कहानियां सुनाते | कहानियों का सिलसिला चालू हो गया | सोते वक़्त भगतजी से तय कर लिया – कम से कम 1 घंटा कहानी जरूर सुनाएंगे | कोशिश करता 1 घंटा 2 या 2 1/2 घंटे में तब्दील हो जाए |
महीनों यह सिलसिला चलता रहा | एक दिन भगतजी को नानाजी से कहते सुना – मगन (मेरी मां) का ये छोरा तो बड़ा समझदार है – पता नहीं कहां कहां से ढूंढ़कर प्रश्न लाता है – कई बार तो मुझे भी जवाब मालूम नहीं होते | उसके साथ मेरा टाइम बड़ा अच्छा कट जाता है |
मेरे लिए भगतजी सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, सोने की खान थे | कितनी कहानियां सुनाई और कितने ही प्रश्नों के उत्तर दिए | उनसे अच्छा गुरु मेरे लिए और कौन हो सकता था ? अगली बार छुट्टियों में जब पहुंचे तो भगतजी इंतज़ार कर रहे थे – देखते ही बेहद खुश | कहने लगे – शुरू करें |
इस वक्तव्य के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूं – गुरु न होते हुए भी मैंने भगतजी को अपना गुरु मान लिया था | जब तक मुझे उनसे कुछ ज्ञान मिल रहा था वह मेरे गुरु थे | और एक दिन वो समय आ ही गया जब भगतीजी बोले – मेरे पास तुझे बताने के लिए और कुछ नहीं बचा | जितना आता था – उससे ज्यादा ही बता दिया | तो मैंने भी कहा – ठीक है |
किसी भी आध्यात्मिक साधक के लिए गुरु के साथ रिश्ता ऐसा ही होना चाहिए – बिना बंधन का | फिर गुरु से दीक्षा लेने का प्रश्न ही कहां उठता है ? जो निस्वार्थ भाव से ज्ञान दे वह ही सच्चा गुरु है |
मेरा भगतजी के साथ नाता साधारण नहीं था | मैंने उनसे पहले ही पूछ लिया था – आपकी कहानियां सुनने के बाद मेरे अंदर जो बहुत सारे प्रश्न आएंगे उनका उत्तर तो दोगे ना | भगतीजी के हां कहने पर ही मैंने वार्तालाप जारी रखा | जीवन भर 5 वर्ष की आयु से मैं कभी किसी के साथ एक तरफा वार्तालाप में नहीं उलझा – एक बार भी नहीं |
जितना भगतजी से जाना और पुस्तकों में भी पढ़ा – दोनों में अगर फ़र्क था तो भगतीजी से clarify कर लिया | मुझे भी सच बोलना पसंद था और भगतजी को भी |
वास्तविक जीवन में हमें किताबी ज्ञान और गुरु के बताए ज्ञान में अगर फ़र्क नजर आए तो clarify कर लेना चाहिए | आजकल गुरु एक तरफा ज्ञान फेंकतें हैं, प्रश्न पूछने की मनाही होती है – ऐसे गुरुओं का सानिध्य कभी नहीं करना चाहिए जो आपके अंदर उमड़ते प्रश्नों का उत्तर देने को या तो तैयार नहीं, या काबिल ही न हों |
What spiritual books should i read | कौनसी आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़े | Vijay Kumar Atma Jnani