जीवन में जिस किसी से भी थोड़ा बहुत सीखने को मिले तो उस पल में वो हमारा गुरु है | लेकिन अध्यात्म की राह में permanent गुरु उसे ही बनाना चाहिए जो तत्वज्ञानी हो | धरती पर आखिरी तत्वज्ञानी थे महर्षि रमण जो 1950 में शरीर त्याग गए | अध्यात्म में जिसने गुरु बना लिया वह permanent फेल है – क्यों ?
आप ज्ञान से ज्यादा गुरु की requirements पर ध्यान देने लगोगे | मन में यह डर सताएगा कि कहीं, कभी जाने अनजाने में कोई गलती न हो जाए कि गुरुजी नाराज़ हो जाएं ? अध्यात्म में गुरु प्रथा वर्जित है | आप 800 करोड़ लोगों में कितने लोगों को समझ रहें हैं कि वो आध्यात्मिक हैं – मुश्किल से 2 या 3 |
अध्यात्म में 12 वर्ष की ध्यान और ब्रह्मचर्य की अखंड तपस्या में उतर साधक सिर्फ 12~14 साल में महर्षि रमण के level पर पहुंच सकता है लेकिन महर्षि रमण को गए 74 साल हो गए, कोई दूसरा क्यों नहीं आया ? अध्यात्म में दान पुण्य का कोई concept नही, न ही जरुरत है |
12 years Tapasya | 12 साल की घोर तपस्या का सच | Vijay Kumar Atma Jnani