हमारे दोष, हमारे क्लेश, हमारी इच्छाएं, हम जीवन के पड़ाव में कहां स्थित हैं – हमसे बेहतर और कौन जान सकता है ? मां सबसे नजदीक होती है – काफी बातें भांप लेती है लेकिन सम्पूर्ण वह भी नहीं | जिन क्लेशों को जड़ से खत्म करने के लिए एक आध्यात्मिक साधक अपने अंदर ध्यान के सफर में उतरता है उसमे ब्राह्म गुरु क्या करेगा ? अंदरुनी ज्ञानमार्ग के (चिंतन के) सफर में गुरु की बिल्कुल आवश्यकता नहीं |
चिंतन में वाकई किसी बाहरी हस्तक्षेप का कोई काम नहीं | वह स्वयं ही करना होगा | इस हेतु ब्रह्म ने मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का लंबा सफर दिया है | क्या आपने कभी महर्षि रमण के गुरु के बारे में सुना | नहीं, क्यों ?महर्षि रमण स्वाध्याय के रास्ते पर चलते हुए अपने अंदर self enquiry में व्यस्त रहते थे | उन्हें कभी गुरु की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई |
हर इंसान कमियों से भरपूर है तभी तो आत्मा ने मनुष्य शरीर धारण किया है कि जल्द से जल्द मुक्ति मिले | मुक्ति मनुष्य योनि में ही संभव है, निचली योनियों में नहीं | अध्यात्म में गुरु की कोई आवश्यकता नहीं | जब हमारे हृदय में कृष्ण सारथी के रूप में स्थित है तो चिंता काहे की | सत्य के मार्ग पर चलकर हम हृदय से आती कृष्ण की वाणी भलीभांति सुन सकते हैं और अपने अंदर के क्लेशों को हमेशा के लिए दूर कर सकते हैं |
मैं repeat कर रहा हूं – सत्य के मार्ग पर, अन्यथा कुछ सुनाई नहीं देगा | सभी पूरी जिंदगी हृदय से आती सारथी (कृष्ण) की आवाज़ को असत्य के पीछे दबा देते हैं और फिर आश्चर्य करते हैं भगवान क्यों नहीं मिलते/ दिखाई देते |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar