अध्यात्म के क्षेत्र में सच्चा और पूर्ण गुरु सिर्फ और सिर्फ वह हो सकता है जिसने ब्रह्म को देखा हो, जाना हो और तत्वज्ञानी बन गया हो | रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण दोनों पूर्ण गुरु थे | रामकृष्ण परमहंस १८८६ में और महर्षि रमण १९५० में अपना शरीर त्याग चुके हैं | आज के समय में सबसे अच्छा साधन चिंतन का है |
महर्षि रमण सशरीर नहीं लेकिन उनका ज्ञान तो पुस्तकों में उपलब्ध है | तो आज यही पुस्तकें हमारी गुरु है | इनमें से ज्ञान बटोर कर हम अध्यात्म में आगे बढ़ सकते हैं | जीवनपर्यंत मैंने महर्षि रमण द्वारा बताए मार्ग का अनुसरण किया | उनका बताया self enquiry का मार्ग अति उत्तम है | शवासन की मुद्रा में लेटकर अगर हम self enquiry के द्वारा चिंतन में उतरते हैं तो गहन फायदा होता है |
कृष्ण, महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस व महर्षि रमण सशरीर उपलब्ध नहीं लेकिन उनका दिया ज्ञान तो आध्यात्मिक पुस्तकों में available है तो चिंता काहे की | इन्हीं पुस्तकों में निहित ज्ञान को गुरु मान मैं आध्यात्मिक सफर में आगे बढ़ता चला गया | अगर पुस्तकों में कोई बात समझ नहीं आई तो चिंतन का सहारा लेकर अंदर छिपे गूढ़ तत्व तक पहुंच गया |
अपने हृदय से आती ब्रह्म, आत्मा की आवाज़ के सहारे अपना आध्यात्मिक सफर पूरा कर लिया |
Listen to Inner Voice coming from within our Heart | हृदय से आती आवाज को सुनना सीखें | Vijay Kumar
