क्या अध्यात्म में परिवार छोड़ना पड़ता है ?


आज के कलियुग में अध्यात्म किसी भी साधक को मजबूर नहीं करता घर छोड़ कर तपस्या में उतरने के लिए | ऐसा क्यों ? पुराने समय में joint परिवार होते थे और एक घेर में रहते थे | किसी घेर में 50, 70 या 120 – सोचिए इतने लोगों के बीच कैसे तपस्या करेंगे आप ? आप तपस्या में लीन और चाचा को लगा खाली बैठा है time pass कर रहा है, चलो इसी से काम करवा लेते हैं |

 

कभी चाचा, कभी ताई, फिर दादी की पुकार – मना किसी को कर नहीं सकते तो तपस्या किस समय करें ? इसी कारण साधक जंगलों में चले जाया करते थे शहर या गांव से दूर | समय बदला, साधन भी बदले | महर्षि रमण ने बताया शवासन की मुद्रा में चिंतन में उतरा/डूबा जा सकता है | जगह कोई भी हो और समय भी कोई | किसी भी प्रकार का बंधन नहीं |

 

मैंने अपने आध्यात्मिक सफर में सोचा, लोग ऐसा कहते हैं तो try करते हैं | मैं New Delhi में All India Institute of Medical Sciences के चौराहे पर जाकर बैठ जाता ऐसे समय जब सबसे ज्यादा भीड़भाड़ होती | पूरे आध्यात्मिक जीवन में सबसे आनंददायक चिंतन यहीं हुआ भीड़ के बीच | आध्यात्मिक सफर तो अंदरूनी सफर है तो बाहर के कोलाहल से तकलीफ कैसी ? 2~3 दिन मैंने इस प्रकार चिंतन का आनंद लिया |

 

जल्दी ही मैं round the clock, 24 घंटे चिंतन करना सीख गया | सुबह उठकर jogging करते, नहाते, breakfast करते, स्कूल में क्लास के दौरान, शाम को सोने के समय भी शवासन मुद्रा में अपने प्रश्न सारथी को सौंप सो जाता था |

 

सुबह उठता, सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते थे या कहें प्रश्न हमेशा के लिए घुल जाते थे | इस तरह धीरे धीरे कर्मों की निर्जरा शुरू हो गई | 37 की आयु में पहुंचने तक शून्य की स्थिति आ गई और 3 अगस्त को सुबह 1.45 पर ब्रह्म के साथ 2 1/2 घंटे का साक्षात्कार |

 

How to indulge in Spirituality when married | गृहस्थ जीवन में अध्यात्म का रास्ता कैसे पकड़ें

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