आध्यात्मिक सफर में चिंतन क्यों किया जाता है ? ध्यान में चिंतन के माध्यम से हम self enquiry भी करते है (जैसे महर्षि रमण कहते हैं) और अपने अंदर आते हजारों प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ते हैं जिससे वे प्रश्न जड़ से समूल नष्ट हो जाएं | शनै शनै जब कर्मों की निर्जरा होने लगती है और प्रश्न कम होने शुरू हो जाते हैं तो उतने गहन चिंतन की आवश्यकता नहीं रह जाती जितनी शुरू में थी |
मान लें 100 kg सोने के अयस्क में एक किलो शुद्ध सोना है | यानी 1 kg खरा सोना और 99% अशुद्धियां | आपने पहले उसे कूटा, चूरा किया और फिर पानी से निकाला | अब 87 kg में I kg खरा सोना | धीरे धीरे वह अयस्क 3 kg रह गया यानी 2 kg अशुद्धि और 1 kg खरा सोना | जब 3 kg अयस्क में 1 kg शुद्ध सोना बचेगा तो पहले के मुकाबले मेहनत ज्यादा लगेगी या कम ?
यदि कम, तो इसका मतलब हुआ जब हम प्रभु के बहुत नजदीक होंगे तो चिंतन कुछ ही समय और करना होगा | निर्विकल्प समाधि की अवस्था में आते ही विचारों का आवागमन बंद, और शून्य की अवस्था आ जाएगी | इसके पश्चात चिंतन की आवश्यकता क्यों पड़ेगी ? जब आत्मा शुद्ध हो गई, खेल खत्म | यही अवस्था है जिसे मोक्ष कहते हैं |
समर्पण जो भक्तियोग में चाहिए वह आज के कलियुग संभव नहीं | इसीलिए रामकृष्ण परमहंस ने भक्ति का मार्ग छोड़ ज्ञानयोग का मार्ग लिया, ज्ञानयोग यानि ध्यान में चिंतन के रास्ते से उतरना | आज के समय ब्रह्म तक पहुंचने का चिंतन ही एकमात्र रास्ता है | आम साधक चिंतन करना ही नहीं चाहता, इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों में फंसा रहता है |
What Karma really means? कर्म का वास्तव में क्या अर्थ है? Vijay Kumar Atma Jnani