जीवन क्यों हैं – इस बात का उत्तर सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म के पास है कि उसने ब्रह्माण्ड क्यों बनाया | हम मनुष्य तो बस इस धरती रूपी भूल भुलैया, मायानगरी में आ जाते हैं – क्यों, हमें खुद पता नहीं | लेकिन भारतीय अगर सनातन श्रुतियों का अवलोकन करें तो पाएंगे कि मनुष्य जीवन बेहद अमूल्य है | मनुष्य रूप में ही हम इस मायानगरी से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं अन्यथा नहीं |
श्रुति अनुसार आत्माएं जीवन का मूल हैं और मानव जीवन तो माध्यम है आत्मा के लिए – जिससे वह अपनी शुद्धि कर सके | जब मनुष्य अध्यात्म में उतर कर्मों कि निर्जरा करता है तो आत्मा शुद्धि की ओर बढ़ती है | जब मनुष्य तत्वज्ञान प्राप्त कर लेता है तो आत्मा पूर्ण शुद्धि प्राप्त कर सूर्य के चंगुल से हमेशा के लिए free हो जाती है |
धरती पर स्थित हर मनुष्य को एक दिन अध्यात्म में उतर तत्वज्ञानी बनना होगा क्योंकि आत्माओं का ध्येय यही है | इसके लिए मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का सफर निश्चित है | हम चाहें या न चाहें – इस जीवन में या आत्मा द्वारा धारित अगले जीवन में हमें एक दिन तो आध्यात्मिक होना ही पड़ेगा – तभी आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिलेगा |
तय हमें करना है कि हम इस जीवन में आध्यात्मिक हो रामकृष्ण परमहंस या महर्षि रमण बनना चाहते हैं या सब कुछ अगले जीवन के लिए छोड़ देते हैं |
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