अगर हम जीवन में अपने आदर्श स्थापित नहीं करेंगे तो जीवन जिएंगे नहीं, सिर्फ और सिर्फ pass करेंगे, जैसे दुनिया के लगभग 95% लोग कर रहे हैं | जीवन में कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं, जिंदगी बस गुजारे जा रहे हैं | कभी रुक कर नहीं सोचेंगे प्रभु ने यह मानव जीवन दिया क्यों ?
महर्षि रमण मूर्ख/अज्ञानी नहीं थे, उन्होंने 11 वर्ष की उम्र में ही जान लिया कि मनुष्य योनि धरती की उच्चतम योनि है और अध्यात्म के रास्ते पर चलकर तत्वज्ञानी हो जाना ही जीवन का मूल ध्येय होना चाहिए | फिर क्या था, जीवन में एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा और कर्मों की पूर्ण निर्जरा कर शुद्ध आत्मा हो गए |
जीवन में लक्ष्य/आदर्श कुछ भी/कैसा भी हो, होना अवश्य चाहिए | जीवन तो पशु भी काट रहा है !
मैंने 5 वर्ष की आयु में भगवान को जानने की इच्छा ठान ली और अंततः 32 वर्ष पश्चात 37 वर्ष की आयु में जब तक ब्रह्म का साक्षात्कार नहीं हो गया, चैन नहीं था | मनुष्य जीवन बना इसीलिए है | मानव जीवन आदर्शों पर आधारित है, लेकिन पशुओं का नहीं | इन्हीं आदर्शों के कारण ही राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहते हैं |
What is the main Purpose of Life? मानव जीवन का मकसद | Vijay Kumar Atma Jnani