एक ज्ञान होता है जिसे हम शास्त्रों से जोड़ते हैं और दूसरी विद्या जिसे हम किताबों से, शिक्षा से जोड़ते हैं | दोनों में मूलभूत फ़र्क क्या है ?
विद्या (bookish knowledge) हम शिक्षा के माध्यम से ग्रहण करते हैं | विद्या ग्रहण करने के लिए पुस्तकों या अध्यापक की जरूरत होती है | मूलतः विद्या ग्रहण रोटी रोज़ी कमाने के लिए की जाती है |
इसके विपरीत ज्ञान हमें ब्रह्माण्ड की उन गहराइयों में ले जाता है, जहां पहुंचकर हमें अहसास होता है हम कुछ हैं ही नहीं | हम तो मात्र एक कपड़े जैसे हैं आत्मा के लिए जिसने यह शरीर धारण कर रखा है |
ज्ञान के माध्यम से हमें यह भी ज्ञात होता है कि अगर हम आध्यात्मिक होकर शास्त्रों में निहित ज्ञान की तह तक पहुंच जाएं तो एक दिन ब्रह्म का साक्षात्कार अवश्यंभावी है | और क्योंकि तत्वज्ञान प्राप्त करना जीवन का मुख्य लक्ष्य है, तो वह ज्ञान ही है जिसके कारण यह सब संभव हो सकता है |
ज्ञान की पुस्तकें जिन्हें हम शास्त्र कहते हैं जैसे वेद, उपनिषद और भगवद गीता – वह ज्ञान का सागर है जिसमें डुबकी लगाकर कोई भी साधक ब्रह्म तक पहुंच सकता है | यहां बस एक ही बात का ध्यान रखना है |
कोई भी शास्त्र उस तरह से नहीं पढ़े जाते जैसे हम विद्या की पुस्तकें पढ़ते हैं | शास्त्रों के अंदर निहित ज्ञान को समझने के लिए हमें ध्यान मार्ग से चिंतन में उतरना होगा | तभी आध्यात्मिक उन्नति होगी, अन्यथा नहीं |
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