मूर्ति पूजा ग़लत क्यों है ?


अगर हम अध्यात्म की राह पकड़ इसी जन्म में ब्रह्मप्राप्ती के इच्छुक हैं और मूर्तिपूजा करते हैं तो कीमती समय नष्ट कर रहे हैं | अध्यात्म में ब्रह्म तक पहुंचने के लिए किसी माध्यम की जरूरत नहीं होती | ब्रह्म निराकार हैं, हृदय में स्थापित हैं, उन्हें ढूंढने बाहर क्या जाना, या मंदिरों में जाकर पूजा इत्यादि क्यों करना ?

 

जो आध्यात्मिक नहीं, जो धर्म के रास्ते पर चलकर भगवान की भक्ति में लीन रहना चाहता है, ऐसे व्यक्ति के लिए मंदिर जाना, विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में समय व्यतीत करना ग़लत नहीं | आखिरकार ब्रह्म ने 11 लाख मनुष्य योनियां जो दी हैं |

 

अध्यात्म की नजरों में मूर्तिपूजा ग़लत नहीं, लेकिन इसकी बिल्कुल जरूरत भी नहीं | आध्यात्मिक साधक ध्यान में चिंतन में डूबकर धीरे धीरे कर्मों की निर्जरा करता हुआ आगे बढ़ता है | अध्यात्म क्योंकि अंदर की journey है, उसमे किसी भी ब्राह्म दखल की जरूरत नहीं |

 

अध्यात्म सबको सम दृष्टि से देखता है, आध्यात्मिक दृष्टि में कोई ग़लत नहीं होता | 11 लाख योनियों में स्थित इंसान कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है | हां – अगर इसी जीवन में सब कुछ पाना है, यानि ब्रह्मलीन होना है तो अनावश्यक धार्मिक अनुष्ठानों से दूर रहना होगा |

 

Is it necessary to go to temple to Realize God | भगवान की प्राप्ति के लिए क्या मंदिर जाना आवश्यक है

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