सिर्फ भगवद गीता ही नहीं सभी श्रुति शास्त्र जैसे चारों वेद और 11 principal उपनिषद एक ही बात को महत्व देते हैं – वह है ताप, तपस – तपस्या के द्वारा अंदर व्याप्त क्लेश को निवृत करने की क्षमता | जाप, माला फेरना, पूजा पाठ, भजन कीर्तन इत्यादि का अध्यात्म में कोई महत्व नहीं | श्रीकृष्ण और भगवद गीता – दोनों अध्यात्म से जुड़े हैं | धार्मिक क्रियाकलापों, कर्मकांडो में व्याप्त होकर आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं |
किसी भी भगवान या देवी देवता में आप क्या ध्यान लगाएंगे – ध्यान यानि अपने अंदर उमड़ते विचारों के सैलाब को जड़ से खत्म करना | यह संभव हो पाता है जब हम गहन चिंतन (contemplation) में उतरते हैं | हमें ब्रह्म तक पहुंचना है – यह तभी संभव है जब हम अपने (अपनी आत्मा) के अंदर व्याप्त अशुद्धि को खत्म कर दें – हमेशा के लिए |
आत्मा की शुद्धि किसी भी धार्मिक कर्मकांड से संभव नहीं | महावीर और बुद्ध 12 वर्ष की तपस्या (ध्यान) में यूं थोड़े ही उतरे थे – उन्हें अहसास था विचारों के उन्माद को खत्म करने के लिए – सनातन श्रुति ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता होती है | मनुष्य के मस्तिष्क में निहित अज्ञान को सिर्फ और सिर्फ ज्ञान का प्रकाश (सनातन श्रुति) ही काट सकते है |
मंदिरों में जाकर या घर में रहकर जाप करने से कितने स्वामी विवेकानंद और फिर रामकृष्ण परमहंस बन गए ? बार बार नामोच्चारण से क्या हासिल होगा ? भगवद गीता अनुसार साधक को सत्यमार्ग पर चलते हुए हृदय से आती भगवान कृष्ण की वाणी सुनने की चेष्टा करनी चाहिए – नहीं तो हृदय में स्थित सारथी भगवान कृष्ण का क्या महत्व ?
मैंने अपने 64 वर्ष के आध्यात्मिक जीवन में आज तक एक भी साधक को मंत्रों का सही इस्तेमाल करते नहीं देखा | मंत्रों का हम बार बार उच्चारण करेंगे – तो क्या वे सिद्ध हो जाएंगे ? ॐ शब्द की महत्ता अपरंपार है लेकिन कोई सही उच्चारण तो करना सीखे !
सम्पूर्ण गीतासार समझना है और भगवान कृष्ण के नजदीक जाना है तो ध्यान की सही प्रक्रिया नीचे दिए video में समझें –
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani