जैसे जैसे हम भगवान की ओर बढ़ते हैं तो अत्यंत आंतरिक सुख/आनंद महसूस करते हैं | ऐसा प्रायः सभी साधकों ने कभी न कभी महसूस किया होगा | भगवान को जानने की क्रिया चाहे कोई भी हो – भक्तियोग, ज्ञानयोग, निष्काम कर्मयोग, भजन कीर्तन, पूजा इत्यादि | ऐसा क्यों होता है ?
मनुष्य अपने मस्तिष्क का 1 ~ 3% हिस्सा इस्तेमाल करता है, बाकी बंद पड़ा हुआ है | जब हम कोई भी आध्यात्मिक क्रिया करते हैं तो मानसिक तरंगे उत्पन्न होती हैं | जितनी हमारी आध्यात्मिक तरक्की, उतनी ऊंची मानसिक तरंगों पर हम operate करते हैं |
जैसे जैसे हम ऊंची मानसिक तरंगों पर operate करना शुरू कर देते हैं हमारी मानसिक स्थिति बेहद सुकून की हो जाती है और हम आनंदित महसूस करते हैं | आम आदमी अगर मानसिक तरंगों की frequency १ ~ १०० के बीच स्थित है तो स्वामी विवेकानन्द थे 1 लाख से 10 लाख के बीच और महावीर 10 लाख से 100 लाख के बीच |
जितनी ऊंची frequency उतना ज्यादा शांति का अनुभव | निर्विकल्प समाधि में स्थित होने का मतलब है न गायब होने वाली चिर शांति | सच्चे आनंद/शांति की अनुभूति सिर्फ और सिर्फ आध्यात्मिक सफर में महसूस की जा सकती है, भौतिक क्रियाओं में नहीं | भौतिक जीवन में सुख महसूस किया जा सकता है जबकि अध्यात्म में आनंद ही आनंद |
जब एक साधक ध्यान में उतरता है तो आनंदित महसूस करता है क्योंकि वह आम इंसान की अपेक्षा high mental frequency पर operate करता है | जब एक साधक ध्यान से वापस भौतिक जिंदगी में लौटता है तो आनन्द धीरे धीरे गायब हो जाता है |
Dhyan kaise karein | ध्यान करने की सही विधि | Vijay Kumar Atma Jnani