ध्यान ओर उपासना में क्या अंतर है ?


ध्यान अध्यात्म की वो पद्वति है जिसके द्वारा ब्रह्म तक पहुंचा जा सकता है | अगर हम इस जीवन में भगवान से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो हमें ध्यान में चिंतन के द्वारा उतरना चाहिए | यह वही रास्ता है जो महर्षि रमण ने प्रतिपादित किया था – शवासन की मुद्रा में self enquiry में खो जाना | इसी मार्ग पर 5 वर्ष की आयु से चलकर मैंने 37 वर्ष की आयु में ब्रह्म का साक्षात्कार किया |

 

Self enquiry में हमें अपने अंदर उमड़ते सभी प्रश्नों को जड़ से खत्म करना होता है | एक समय ऐसा आ जाता है जब एक भी प्रश्न अंदर नहीं आता और अंदर से बाहर नहीं जाता और शून्य की स्थिति आ जाती है यानि विचार शून्यता | इसी अवस्था को निर्विकल्प समाधि कहते हैं | विचार शून्य होने के पश्चात जब हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि ब्रह्म कौन हैं तो अंततः ब्रह्म से साक्षात्कार हो जाता है |

 

अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए जब मैंने अपने दादाजी जो घर में रहते हुए संन्यास ले चुके थे पूछा, क्या मैं महावीर बन सकता हूं तो उन्होंने कोई जवाब नही दिया | गांव के और बुजुर्गों से जब यही सवाल पूछा, सब निरुत्तर | धीरे धीरे मुझे महसूस हुआ सभी लोग उपासना में व्यस्त हैं | सब भगवान को पूजते हैं लेकिन मानव भगवान जैसे महावीर, बुद्ध बनने की कोई नहीं सोचता |

 

अध्यात्म के सफर में पूजा, उपासना में व्यस्त रहना सबसे बड़ा राह का रोड़ा है | क्यों ? अगर हम यह मान कर बैठ जाएंगे कि हम महावीर नहीं बन सकते या उनसे भी ऊपर नहीं जा सकते तो आत्मज्ञान के मायने क्या हैं ?

 

महावीर, बुद्ध, आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस और महर्षि रमण – सभी ने पहले आत्मज्ञान प्राप्त किया और फिर ब्रह्म से साक्षात्कार और सभी अंततः मोक्ष की स्थिति में पहुंच गए | जिसके पास जैसा साधन – लक्ष्य सभी का एक, जन्म और मृत्यु के चक्रव्यूह से छुटकारा और अंततः एक शुद्ध आत्मा बन हमेशा के लिए ब्रह्म से योग/मिलन |

 

उदाहरण के तौर पर – महावीर के पास MACH 5 speed के सुपरसोनिक जेट की सुविधा थी वो उसका इस्तेमाल कर दिल्ली से मुंबई पहुंच गए | मुंबई में है ब्रह्म का निवास | बुद्ध तो राजमहल छोड़ भाग गए थे, तो सिंहासन की सुविधाएं बंद थी, दोस्त ने commercial airliner से भेज दिया | आदि शंकराचार्य ठहरे योगी, express train से ही पहुंच गए | रामकृष्ण परमहंस बस से और महर्षि रमण cycle ऐवम पैदल | goal था मुंबई पहुंचना (ब्रह्म में लीन होना), वो सब ने कर लिया |

 

सच्चे आध्यात्मिक साधक को यह बात हमेशा ध्यान रखनी होगी कि हमारा लक्ष्य है ब्रह्म मिलन, तो इसमें मानव भगवानों की उपासना के लिए कोई जगह नहीं |

 

हम ब्रह्म की उपासना करते हैं तो इसके विपरीत हमारे आध्यात्मिक शास्त्र कहते हैं हमारी आत्मा हृदय में विद्यमान है | अगर हम ध्यान/चिंतन/ प्राणायाम के माध्यम से हृदय में बैठी आत्मा को जान लेते हैं तो ब्रह्म को भी जान लेंगे | इसलिए साक्षात्कार को आत्मसाक्षात्कार भी कहते हैं | एक गेहूं का दाना, एक आत्मा और गेहूं की ढेरी परमात्मा, ब्रह्म |

 

जैसे ही आत्मसाक्षात्कार हो जाता है, मानव जीवन का खेल खत्म | शुद्ध आत्मा का कर्मो की पूर्ण निर्जरा के बाद पुनः शरीर धारण करने में कोई प्रयोजन नहीं रह जाता | ब्रह्म मिलन यानि एक शुद्ध आत्मा बन हमेशा के लिए मुक्ति | उपासना एक धार्मिक (religious) कर्मकाण्ड/अनुष्ठान ritual है | धार्मिक अनुष्ठानों से हम कभी भी ब्रह्म को नहीं जान सकते | ब्रह्म तक पहुंचने के लिए अध्यात्म की राह पर चलना ही होगा |

 

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