आम साधक जब आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ता है तो अक्सर सिरदर्द का शिकार हो जाता है | इसका कारण है – आम इंसान अपना मस्तिष्क २ ~ ३% इस्तेमाल करता है | बाकी ९७ ~ ९८% जन्म से बंद है | बंद पड़ा मस्तिष्क का हिस्सा सिर्फ और सिर्फ कुण्डलिनी के जागरण और चक्रों के खुलने से directly connected है |
जैसे जैसे आध्यात्मिक प्रगति होती है और शास्त्रों में निहित ज्ञान के प्रकाश से हम अपने अंदर के अज्ञान के अन्धकार को काटते हैं तो यह बंद पड़ा मस्तिष्क हरकत में आता है और धीरे धीरे खुलने लगता है | जन्मों से बंद पड़ा यह मस्तिष्क का हिस्सा जब खुलने की कोशिश करता है तो बेइंतेहा सिरदर्द होता है |
कभी कभी इतना कि एक बार जब काफी doctors को दिखाने के बाद भी आराम नहीं हुआ तो मैं शहर के बीचोबीच बहती नहर पर पहुंच गया कि आज कूद कर जान दे दूंगा | किसी भी दवाई या balm से कोई relief नहीं | मैंने अपने आध्यात्मिक सफर में यह दर्द सबसे ज्यादा लगातार ७ दिन तक सहा है | दर्द इतना तेज शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता |
४-४ दिन तक स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ी | लेकिन मैं सब कुछ बर्दाश्त करने को तैयार था, बस प्रभु की खोज जारी रहनी चाहिए | यह तो जब ३७ वर्ष की आयु में ब्रह्म का साक्षात्कार हो गया तब समझ आया बंद पड़े मस्तिष्क का झमेला |
Why do I feel headache after Meditation? ध्यान में सिरदर्द क्यों होता है | Vijay Kumar Atma Jnani