स्वयं के वास्तविक स्वरूप को समझने की ध्यान प्रक्रिया में त्याग का क्या स्थान है ?


स्वयं को प्राप्त करने के लिए (शुद्ध आत्मा बनने के लिए) अध्यात्म की राह पर हमें निम्नलिखित चीज़ों का त्याग करना ही होगा –

 

1. मैं (अहंकार) जो अध्यात्म की राह में सबसे बड़ा बाधक है | मैं पर कंट्रोल पाने के लिए हमें सम भाव में रहना होगा | हमें कर्म निष्काम भाव से करने होंगे | यह शरीर हमारी आत्मा ने धारण किया है तो कर्मफल भी आत्मा का हुआ | जब हम मात्र एक निमित्त हैं, एक मीडियम हैं आत्मा के लिए, तो पुण्य कर्म करना हमारी ज़िम्मेदारी है, तभी आत्मा कर्मों से निर्जरा जल्द कर पायेगी |

 

जब हम चिंतन के माध्यम से सोचेंगे, तो पाएंगे हमारा कुछ भी नहीं, मृत्यु के समय जो साथ जाएगा सिर्फ कर्मफल | उसी कर्मफल के आधार पर आत्मा नया शरीर ग्रहण करती है | अब आप जान गए होंगे हर समय पुण्यकर्म करने की महिमा | अगर इस जन्म में पापकर्म में उलझे रहे तो अगला जन्म दिहाड़ी मजदूर या भिखारी का मिलेगा यानी गरीब परिवार में पैदा होंगे |

 

यह किसी मजदूर को गाली नहीं, सोच का नजरिया है | में भी एक गरीब घर का बेटा हूं | गरीबी को बहुत नजदीक से देखा है | गरीब घर में पैदा होना फक्र की बात नहीं | मजदूरी 8 घंटे की तो कमाई 500/= और अगर सॉफ्टवेयर इंजिनियर के घर पैदा हुए तो उसी 8 घंटे के 2000/= से लेकर 5000/= तक | अगर अंबानी के खानदान में पैदा हुए तो कहने ही क्या ?

 

निष्कर्ष, मैं को जल्द से जल्द त्यागने में ही भलाई है | कोशिश से सब संभव है |

 

2. रिश्तों का मोह – मोह त्यागना बेहद ही कठिन काम है | बाकी सब हो जाएगा लेकिन मोह आखिर में कटेगा | अपने बच्चे – उनसे कैसे पीछा छुड़ाएंगे | बच्चों से एक बार नाता छूट भी जाए लेकिन पोते पोतियों, धेवते धेवतियों का मोह – उसे कैसे काटेंगे ? जब पत्नी पूछेगी – कहां चल दिए, मैंने क्या गलती कर दी, तो क्या कहोगे, भगवान की खोज में ?

 

रिश्तों को त्यागने में बेहद वक़्त लगेगा और एक भी रिश्तेदार दुर्योधन निकल गया – सुई की नोक के बराबर भी कुछ नहीं दूंगा तो तुम्हारे पीछे, तुम्हारे अपने परिवार का गुजारा कैसे चलेगा ?

 

3. पांचों इंद्रियों पर पूर्ण control स्थापित करना होगा | जलेबी खानी बेहद पसंद है, और भी हजारों ख्वाहिशें होंगी, सभी को एक एक कर काटना/ त्यागना होगा | कहना आसान लेकिन करना उतना ही मुश्किल | इसीलिए ब्रह्म ने यह सब करने के लिए लंबा समय दिया है, 1 करोड़ वर्ष का (मनुष्य रूप में 11 लाख योनियों का सफर) | महावीर/ महर्षि रमण बनना इतना आसान नहीं |

 

4. ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए अपनी कामोत्तेजना का त्याग या कहें channelization/ अपनी समस्त शारीरिक ऊर्जा को कुण्डलिनी को उर्ध्व करने में लगाना होगा |

 

5. अहंकार खत्म कर लिया, मोह से भी निवृत्त हो गए, इन्द्रियों पर भी control स्थापित कर लिया लेकिन प्रारब्ध कर्मों का क्या, उन्हें कैसे काटेंगे जिन्हें हम जानते तक नहीं | सबसे आखिर में प्रारब्ध कर्मों की निर्जरा होगी लेकिन इसके लिए प्रारब्ध कर्म का मंत्र चाहिएगा जो किसी को नहीं मालूम | सभी पिछले जन्मों से चले आ रहे संचित कर्म जो अभी फलित होने बाकी हैं उन्हें काटने में वक़्त लगेगा |

 

प्रारब्ध कर्म directly त्याग से सम्बन्धित नहीं लेकिन indirectly तो हैं | प्रारब्ध यानी उन रिश्तों का त्याग जो जन्मों से चले आ रहे हैं |

 

खुद को पाने के लिए/ अध्यात्म में उतरने के लिए त्याग ही त्याग करना पड़ेगा हर चप्पे पर | जब सब कुछ त्यागते चले जाएंगे और कर्मों की निर्जरा शुरू हो जाएगी तो अंत में क्या बचेगा – अपना शुद्ध रूप और अंततः हम तत्वज्ञानी हो जाएंगे |

 

What is Moha | मोह क्या है | Vijay Kumar Atma Jnani

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